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________________ सधनास्ते श्वो निर्धनाः स्युः / मैं तुम्हें ठोक-पीट कर अच्छा लड़का बना दूंगा (मैं तुम्हें बार-बार ताड़ना करके योग्य बना दूंगा)=ताडयित्वा ताडयित्वा त्वामहं विद्वांसं करिष्यामि / परीक्षा की असफलता से छात्र को निराश नहीं होना चाहिए (यह विचार कर कि मैं परीक्षा में अनुत्तीर्ण हुअा हूँ छात्र निराश न हो) =नोत्तोर्णोऽस्मि परीक्षामिति हताशो मा भूच्छात्रः / मुझे तुम्हारे प्रस्ताव पर कोई आपत्ति नहीं (=मैं तुम्हारे प्रस्ताव का विरोध नहीं करूँगा)=नाऽहं ते प्रस्ताव विरोत्स्यामि / दीवार फाँदने का मेरा यत्न यूँ ही गया, (दीवार को लाँधने का मेरा प्रयत्न निष्फल हुआ)-कुड्यलङ्घने मे प्रयत्नो विफलोऽभूत् / उसने अपनी टाँग तोड़ ली (उसकी टाँग टूट गई) भग्नस्तस्य पादः / वह रस्सी में अपना पैर फँसा बैठा (उसका पैर रस्सी में फंस गया)=पाशे बद्धोऽभूत्तस्य पादः / ऋषि के आने पर वह फूला न समाया ( ऋषि के आने की प्रसन्नता उसमें नहीं समाई ) तस्मिन् ( कृष्णे ) तपोधनाभ्यागमजन्यः प्रमोदो नाऽमात् / प्रायो, खुली हवा में चलें ( खुले मैदान में चलें ) =प्रकाशमवकाशं गच्छामः / संकट में द्रौपदी को हरि का ध्यान आया ( हरि का चिन्तन किया )विषमपतिता द्रुपदात्मजा हरिमचिन्तयत्, अथवा हरिं मनसा जगाम / उन्होंने घर को आग लगा दी (घर में आग दे दी) ते गृहेऽग्निमददुः / यह चोट पर चोट लगी है (यह घव पर नमक छिड़कना है)-अयं ते क्षारप्रक्षेपः / क्या चीज अच्छा कवि बनाती है सत्कवित्वे किं कारणम् / उसका यह गुण उसके अन्य दोषों को धो देता है पोंछ देता है) अयं तस्य गुणोऽ न्यान्दोषान्प्रमाष्टि / वे घोर कर्म करने पर उतारू हैं (उन्होंने निघृण कार्य करने की ठानी है)-तेऽदयमाचरितुं व्यवसिताः / ऊपर के सब वाक्य उदाहरण के तौर पर दिये गये हैं, इनके अतिरिक्त ऐसे ही कई एक अन्य वाक्य भी हैं। जाने को तो मैं वहां जा सकता हूँ (यदि मुझे वहाँ अवश्य जाना है)=यदि मे तत्रावश्यं गन्तव्यं ननु क्षमोऽस्मि गन्तुम् / काश्मीर घाटी की सुन्दरता कहते नहीं बनती (=कही नहीं जा सकती) काश्मीरद्रोण्या रामणीयकं वाचामगोचरः, वक्त न लभ्यते / दूत महाराज जनक की सेवा में भेजा गया (दत""के पास, चरणों में)= महाराजाय जनकाय विसृष्टो दूतः, महाराजस्य जनकस्य पादमूलमनुप्रषितो दूतः। कोई कितना ही दुष्ट क्यों न हो (= यद्यपि कोई अतिदुष्ट हो)= यद्यपि कश्चिदतिदुर्जनः स्यात् / अतिदुर्जनोऽपि चेत्स्यात् /
SR No.032858
Book TitleAnuvad Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharudev Shastri
PublisherMotilal Banarsidass Pvt Ltd
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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