________________ ( 206 ) स्वप्न में भी गुमान न था। जिन लड़कों को उसने अपना हृदय रक्त पिला-पिला कर पाला वही आज उसके हृदय पर यों आघात कर रहे हैं ! अब यह घर उसे कांटों को सेज हो रहा था, जहां उसका आदर नहीं; कुछ गिनती नहीं / 'वहाँ अनाथों की भांति पड़ी-पड़ी रोटियों के टुकड़ों पर तरसे, यह उसकी अपनो अभिमानिनी प्रकृति के लिये असह्य था। पर उपाय ही क्या था ? नाक भी उसी की ही कटेगी२ / संसार उसे थूके तो क्या, लड़कों को थूके तो क्या ? बदनामी तो उसी की है, दुनिया तो ताली बजायेगी कि चार बेटों के होते हुए बुढ़िया अलग पड़ी हुई मजूरी करके पेट पाल रही है 3 / अब अपना और घर का पर्दा ढंका रहने में ही कुशल है। उसे अपने को नई४ परिस्थितियों के अनुकूल बदाना पड़ेगा। अब तक वह स्वामिनी बनकर रही; प्रब लौंडी बनकर रहना होगा। अपने बेटों की बातें और लातें गैरों की बातों और लातों से फिर भी लाख गुना अच्छे हैं। संकेत-पति के मरते ही".".""गुमान न था---संस्थित एव भरि (प्रमीत एव पत्यो) औरसा मे सुता मयि शत्रयिष्यन्त इति न तया स्वप्नेऽपि सम्भावितमासीत् / वहां अनाथों की भांति......"असह्य था-तत्रानाथवत्पतिता रोटिकाशकलेभ्यस्ताम्येयमिति मानिनी सा नासहिष्ट / संसार उसे थूके....."थूके तो क्या-लोकस्तां धिक्कुर्यात्तदात्मजान्वा धिक्कुर्यात् / दुनिया तो ताली बजायेगी-लोकस्तूपहसिष्यति ( लोकस्तु विडम्बयिष्यति ) / अपने बेटों की बातें और लातें....."अच्छे हैं तथापि स्वसुतानामाक्षेपाः प्रहाराश्च परकीयेभ्यस्तेभ्यः सुदुरं प्रकृष्यन्ते। अभ्यास-५६ प्रात:काल से कलह का प्रारम्भ हो जाता। समधिन समधिन से और साले बहनोई से गुथ जाते / कभी तो अन्न के प्रभाव से भोजन ही न बनता, कभी बनने पर भी गाली गलौज के कारण खाने की नौबत न पाती। लड़के दूसरों के खेत में जाकर मटर और गन्ने खाते और बुढ़िया दूसरों के घर जाकर अपना दुखड़ा रोती और ६ठकुर सुहाती६ करती। किसी भांति घर में नाज पा 1-1 तत्रानाथवदवमता रोटिकाशकलेभ्यस्ताम्येयमिति मानिन्यास्तस्या अविषह्यमासीत् / 2-2 संभावनया तु स एव हास्यते ( मानहानिस्तु तस्यैव भविष्यति ) / 3-3 विष्टयोदरं (विष्ट या उदरं) बिति / 4-4 परिवृताया भवस्थितः। ५-सतीनक पुं० / 6-6 चाटु-नपुं० /