SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 255
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ 204 ] दाम माँगने चले है। आंखों में धूल झोंक दी, सत्यनाशी बैल गले' बांध दिया', हमें निरा पोंगा ही समझ लिया। हम भी बनिये के बच्चे हैं, ऐसे बुद्ध नहीं और होंगे। पहले 3 किसी गढ़े में मुँह धो पात्रों३, तब दाम लेना / न जी मानता हो तो हमारा बैल खोलकर ले जाओ। महीना भर के बदले दो महीना जोत लो और क्या लोगे? हमारा 4 सिर ? ___ संकेत--पौ फटते ही..........."थैली गायब-व्युष्टायामेव निशायां (विभातायामेव विभावर्याम्, प्रभातायामेव शर्वर्याम् ) विनिद्रोऽसौ ( सुप्तोत्थितः सः ) झटिति हस्तेन कटिमस्पतदर्थभस्त्रां च नष्टामदर्शत् / यहां व्युष्टमात्रायां निशायाम्-इत्यादि भी कह सकते हैं / 'मानं कात्स्न्येऽवधारणे'यह अमर का वचन है। जब मात्र-शब्दान्त विशेष्य हो तो नित्य नपुंसक लिङ्ग होता है-नहिं सम्पाठमात्रमृग्भवति ।......"वाङ्मात्रेणापि नार्चयेत्-इत्यादि / विशेषण होने पर यह विशेष्य के लिङ्ग को ले लेता है, जैसा कि ऊपर के वाक्य में स्पष्ट है / कभी-कभी 'मात्र' शब्द स्वार्थ में भी प्रयुक्त होता है-'प्रविष्टमात्र एवाश्रमं तत्र भवति निरुपप्लवानि नः कर्माणि संवृत्तानि'--शाकुन्तल / तावदेव तावन्मात्रम् / इसलिये प्रकृत में भी व्युष्टमात्रायामेव इत्यादि भी कह सकते हैं। निगोड़े ने....."लुट गई-अपसदेनानेन ( दास्याः पुत्रेण ) एवमलक्षण्यो बलीव>पितो येन सर्वमायुरर्जितो नो द्रव्यराशिविलीनः / तब साहु और सहुमाइन चढ़ बैठते........"माँगने चले हैं तदा साधू मन्युमाविक्षताम्, असंबद्धं च बहु प्रालपिष्टाम् / अहो इतस्तु नः सर्वमायुरजितोर्थो विनष्टः, सर्वस्वं च विध्वस्तम्, अयं तु मूल्यमेवानुबध्नाति ( अस्य तु मूल्ये निबंन्धः)। मृतप्रायो वृषो दत्तस्तत्रापि वस्नं वनुते / अहो धाष्यम् / प्रांखों में धूल झोंक दी चक्षुष्मन्तोपि वयमन्धा इव कृताः शठेन / अभ्यास-५१ पण्डित समाज ने अलग एक निश्चय किया कि पण्डित मोटे राम को राजनीति में पड़ने का कोई अधिकार नहीं। हमारा राजनीति से क्या सम्बन्ध ? इसा वाद-विवाद में सारा दिन कट गया और किसी ने पण्डित जी की खोज खबर न ली५ / लोग खुल्लम खुल्ला कहते थे कि पण्डित जी ने 1 1-1 अस्मासु भारो न्यस्तः / 2-2 अत्यन्तबालिश-वि०। 3-3 कृतमात्मनस्तावद् विद्धि / 4-4 किमन्यदादातुमिच्छसि, किं शिरो नः कृत्तमिच्छसि / 5-5 नान्वषत, न चावक्षत। ६-प्रकाशम् /
SR No.032858
Book TitleAnuvad Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharudev Shastri
PublisherMotilal Banarsidass Pvt Ltd
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy