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________________ ( 195 ) रहो / जो बालक दिन भर खेल के ध्यान में रहते हैं, वे जब अध्यापक के सन्मुख पाठ सुनाने जाते हैं, तो मुख देखते रह जाते हैं / अध्यापक अप्रसन्न होता है / माता-पिता स्नेह नहीं करते / विद्या बड़ी सम्पत्ति है / उससे वंचित रहते हैं / संकेत---हाथ पांव खुलते हैं करचरणे परिस्पन्द उपजायते (पाणिपादं परिस्पन्दि भवति) / शरीर में चुस्ती आती है दक्षते देहः / इनके मुख क्या तरो ताजा हैं-अहो प्रसन्न एषां मुखरागः / उसे देखो भूमि पर पांव नहीं लगाता=पश्य, सोऽस्पृशन्निव भूमि गच्छति / यह चंचल है...."भद्दा है-प्रयं पारिप्लवोऽयं दुःश्लिष्टवपुः / तो मुख देखते रह जाते हैं-गुरुमुखं सम्प्रेक्ष्यैवावाचो भवन्ति / अभ्यास-४२ एक धनी युवक ने दो तीन वर्षों में अपनी सारी सम्पत्ति व्यभिचार मोर फजूलखर्ची में बरबाद कर दी, और अत्यन्त दीन हो गया। झठे मित्र भला ऐसे समय कब काम आते हैं / सहानुभूति की अपेक्षा उससे घृणा करने लगे। जब वह अधिक दीन हो गया तो अपनी भविष्य के अपमान और मुसीबत का विचार करके२ यद्यपि जीवन प्यारा होता है, तथापि उसने जीवन त्याग करने का निश्चय किया और हृदय में ठान ली कि चलो पहाड़ से अपने आपको नीचे गिरा दो। सारांश आत्महत्या का निश्चय करके वह एक पर्वत के शिखर पर चढ़ गया है। वहां से समस्त बस्तियां जो कि एक दिन खास उसी की थीं नजर आने लगीं और उनको देख अनन्तर विचार शक्ति ने आश्रय दिया। धर्य और हिम्मत ने जो बाजू पकड़े तो जीवन का किनारा नजर आने लगा। प्रसन्नता के कारण उछल पड़ा और कहने लगा कि मैं अपनी कुल सम्पत्ति फिर लूंगा। यह कहकर नीचे उतर आया और कुछ मजदूरों को कोयला उठाते देखकर स्वयं भी उनका साथी हो गया। ____ संकेत-एक धनी युवा....."अत्यन्त दीन हो गया=कश्चिद् धनिको युवाऽविकलां स्वां सम्पदं स्वैरितया वृथोत्सर्गेण चोपायुंक्त, नितरां चोपादास्त / धैर्य और हिम्मत ने....."पाने लगा=यदा धैर्यमुत्साहश्च तदवलम्बनायाऽभूतां तदा। जीवितरेखामभिमुखीमपश्यत् / 1. समवेदना-स्त्री० / 2-2. प्रायती स्वस्यापमानं व्यापदं च मनसिकृत्य / 3-3. शिखरिशिखरमारुक्षत् /
SR No.032858
Book TitleAnuvad Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharudev Shastri
PublisherMotilal Banarsidass Pvt Ltd
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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