________________ ( 141 ) सुखं न्यवसत् (महत् सुखमाश्नुत)। अल्पापेतो' ह्यभूत् / 'तत्कालीन' शब्द संस्कारहीन है, यद्यपि इसका बहुत्र प्रयोग देखा जाता है / १४-न केवलमसावधार्मिको भवति, पार्मिकोऽपि / यहां 'अधार्मिक' और 'पार्मिक' का भेद जानने योग्य है / धर्म चरतीति धार्मिकः / न धार्मिकः अधार्मिकः / अधर्म पापं चरतीति प्रार्मिकः / २१-सर्वपथोनाऽस्य धिषणा / धुर्यः स विदाम् (धौरेयो विदुराणाम्) / २२-अयमापूपिकः संयावरूपं विक्रीणीते इति प्रशस्यते, पयस्पाशमिति निन्द्यते / अभ्यास-२४ (कृत्य और अन्य कृत् प्रत्यय ) 1- तुम्हें बासी और खट्टा भोजन नहीं करना चाहिये। यह सुस्ती को उत्पन्नकर स्वास्थ्य को बिगाड़ देता है / इतिहास जाननेवालों को सबसे बढ़कर केवल तथ्य का आदर करना चाहिये / 3- इस (ब्रह्म) की व्याख्या करनेवाला कोई विरला ही (आश्चर्य) है और पूछनेवाला भी कुशल है / ४-बाजार में बहुत सी बिकाऊ वस्तुएँ हैं, परन्तु उनमें खरीदने योग्य थोड़ी ही हैं / ५-जो कुछ कल तुमने अपने मित्रों के सामने कहा, उससे विपरीत नहीं जाना चाहिये / ६-हिम दोनों में सदा रहनेवाली मैत्री हो / ७-विद्वानों को गुण-पक्षपाती होना चाहिये, दोष 3 में ही दृष्टि नहीं रखनी चाहिये ।।८-रात को बाहर जाते समय तुम्हें लाठी के बिना नहीं निकलना चाहिये / ६-यदि तुम्हारे अपने काम में विघ्न न हो, तो तुम्हें प्रातः ही वहां पहुँचा जाना चाहिये। १०-बहुत विस्तार को जाने दो, कृपया संक्षेप से कहो / ११-मुझे इस कमरे की लम्बाई और चौड़ाई. मालूम है। यह कितना ऊँचा है मैं नहीं जानता / १२-वैयाकरणों के समाज में पतञ्जलि मुनि भाष्यकार माने जाते हैं। 1. संस्कृत में 'आवश्यकता' शब्द नहीं है। इसके स्थान पर अपेक्षा शब्द का प्रयोग करना चाहिये / जहां अनिवार्यता अर्थ हो वहां 'अवश्यम्भाव' पुं. अथवा 'पावश्यक' नपुं० का प्रयोग करना चाहिये / 2. गुणगृह्य-वि० / 3-3. दोषकदृक्, पुरोभागिन्-वि० / भावार्थक-पौरोभाग्य-नपु० / ४-विस्तर, प्रपंच, व्यास-पु० / यहां 'विस्तार' का प्रयोग अशुद्ध होगा। 5-5. वैयाकरणनिकाये।