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________________ ( 134 ) चन्द्र की अपेक्षा सूर्य अभ्यहित है (पूज्य, श्रेष्ठ है), प्रतः समास में सूर्यवाची पद पहले आता है। इन दोनों को एकपद 'पुष्पवन्तौ' से भी कह सकते हैं / १५विषयव्यावृत्त-कौतूहलः / १७-षण्मासजात एष शिशुः / अस्मिन्नपूर्वः कोऽपि परिस्पन्दः / षण मासा जातस्यास्य / यह त्रिपद तत्पुरुष है। अभ्यास--१९ (समास) १-ये गरमी के दिन हैं, जब जल में स्नान करना भला मालूम होता है, जब गुलाब के फूलों के संसर्ग से वायु सुगन्धित रहती है, जब सघन छाया में नींद आसानो से आ जाती है, जब साँझ सुहावनी होती है। २-शरीर के ऊपर के भाग में (पूर्वकाये) प्रोढ़े जानेवाले वस्त्र को उत्तरीय कहते हैं और नीचे के भाग में (अपरकाये) पहने जानेवाले वस्त्र को परिधानीय कहते हैं / ३-हे माली ! मेरे लिए अच्छी सुगन्धवाले कोई तीन एक हार गूथ दो / ४-यदि वह पाप को धोना चाहता है, तो उसे ब्राह्मण को दस गौ और एक बैल देने चाहिए। ५-मैं अब जाने के लिए उत्कण्ठित हूँ, क्योंकि मेरे यहां ठहरने से मेरे व्यापार में विघ्न पड़ता है। ६-पुस्तक को हाथ में लिये हुए मेरे पास आओ और 'एकाग्रचित्त होकर पढ़ो। ७-दुर्व्यवहार किये जाने पर होठों को काटते हुए और लाल अाँख किये हुए वे राजकुमार वहाँ से उठकर चल दिये / ८-नागरिक और देहाती लोग 3 राज्य शासन में किये गये इस महान परिवर्तन को जानें / -अमित तेजवाले और पापों से विशुद्ध हुए ऋषि भारत में रहते थे। १०-बहुत पलियोंवाले राजा सुने जाते हैं, यह शकुन्तला की सखी प्रियंवदा ने राजा दुष्यन्त से कहा / ११-मेरे जोड़ों में चोट लगी है, इसलिए मेरे हाथ पांव आगे नहीं बढ़ते / १२-उसने सारी रात जागकर काटी (प्रांखों में काटी)। १३-उन दोनों में मुक्का-मुक्की युद्ध तबतक जारी रहा जबतक एक हार नहीं गया / १४-कोसे जल से स्नान करें, इससे आपको सुख अनुभव होगा। १५-शरत् काल के बादल के समान चंचल, तथा बहुत छलवाली लक्ष्मी अपनी इन्द्रियों पर वश न रखनेवाले लोगों से आसानी से नहीं बचाई जा 1-1. एकतान, अनन्यवृत्ति, एकाग्र, एकायन, एकसर्ग, एकाग्र-एकायनगतवि० / 2-3. पौरजानपदाः /
SR No.032858
Book TitleAnuvad Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharudev Shastri
PublisherMotilal Banarsidass Pvt Ltd
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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