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________________ ( 126 ) स्वामी पिछले बरस (परुत्) नहीं पाया, और न उसकी इस बरस (ऐषमस्) लौटने की प्राशा है। ३-मैंने तुम्हें बार-बार (असकृत्) कह दिया है कि मैं अपने इरादे को बदलनेवाला नहीं / ४-शास्त्रों के अनुसार मृत्यु के पश्चात् (अनुपदम्, अन्वक्) पुनर्जन्म होता है। ५-भारतवर्ष कब पहले की तरह जगद्गुरु बनेगा, और कब अपने पुराने वैभव को प्राप्त करेगा ? 6- जब तेरी बुद्धि प्रज्ञानरूपी दलदल के पार पहुंच जायगी तब (तदा) जो कुछ तुम (पहले) पढ़ चुके हो, और जो तुमको अभी पढ़ना है उसके प्रति तुम्हें परम वैराग्य प्राप्त हो जायगा / ७-क्या तुम वहाँ गये थे? जी हाँ, (अथ किम्) मैं गया था। ८-प्रस्ताव का विरोध करने के लिए नगररक्षिणी सभा के , बहुत से सदस्य एक साथ (युगपद्) चिल्ला उठे (प्राक्रोशन्, सम्प्रावदन्त)। 8-अब मुझे जाने दो२ / मैं तुम्हें परसों (परश्वस्) फिर मिलूंगा, तब हम बाकी विषयों पर विचार करेंगे / १०-*कल (श्वस्) क्या होनेवाला है, यह कौन ठीक-ठीक (प्रद्धा) जानता है। ११-तारे रात को (दोषा) चमकते हैं, और दिन में (दिवा) छिप जाते हैं / १२-सूर्य पूर्व में उदय होता है, और पश्चिम में प्रस्त होता है-यह कथन मिथ्या है / वस्तुतः उसका न उदय होता है और न अस्त। १३-तुम क्यों अजनबी की तरह ( इव ) पूछते हो? तुम तो यहाँ चिर से (चिरात् प्रभृति) रहते हो। १४-क्या (किम्) यह जगत् रस्सी में सांप की तरह अथवा (उत, पाहो, उताहो, आहोस्वित्) सीप' में चांदी की तरह मिथ्या है वा सत्य है ? १५-अनुवाद करना विद्वानों के लिए भी कठिन है, साधारण छात्रों का तो कहना ही क्या (किं पुनः) ? 16- यदि उल्लू दिन में नहीं देख सकता, तो इसमें सूर्य का क्या दोष ? १७-उसका उच्चारण कुछ नहीं, वह तो अच्छी तरह शिक्षा दिया हुमा भी बार-बार प्रशुद्ध उच्चारण करता है / १८-ज्योंही अलक्षेन्द्र घोड़े पर सवार हुआ, घोड़ा हवा हो गया / १६-*ज्यों-ज्यों मनुष्य शास्त्र को पढ़ता है त्यों-त्यों ज्ञान को प्राप्त होता है और ज्ञान में उसकी रुचि होती है। २०-वह गरमी की ऋतु में 1--1. नाहं निश्चयं हारयामि / 2. सम्प्रति विसृज माम् / 3--3. विम्रक्ष्यावः, विमाव:--विमृश्--लट्, चिन्तयिष्यावः। ४-आगन्तु, आगन्तुक-वि० / 5-- शुक्ति-स्त्री० / ६-इस वाक्य के अनुवाद में 'यदि' शब्द सिद्धार्थानुवाद में प्रयुक्त होता है / 7--7. वातस्येव रंहोऽधात्, वायुरिव क्षेपिष्ठो बभूव, अवातायत /
SR No.032858
Book TitleAnuvad Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharudev Shastri
PublisherMotilal Banarsidass Pvt Ltd
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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