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________________ (103) कुछ कठिन नहीं कि मुसलमानों से बढ़िया बर्ताव करने में सरकार का क्या अभिप्राय है। १२-शास्त्ररूपी समुद्र के पार गये हुये गुरुषों ने रघु को शिक्षा दी (वि+नी)। १३-जो अपनी वासनाओं पर काबू रखते हैं (वि+ नी+प्रा० ) वे इस संसार में खूब फलते' फूलते हैं / १४–तुमने यह कैसे निश्चय किया (निर् +नी) कि वह गलती पर है। १५–शर्मीली' दुलहिन ससुर के होते हुए अपना मुँह फेर लेती है (वि+नी)। १६-तब उसने दोनों हाथ जोड़कर ( समा+नी ) गुरु को प्रणाम किया (प्र+नम् ) और गुरु ने प्रसन्न होकर आशीर्वाद दिया। 17-* आप दोनों को कौन सी कला में शिक्षा दी गई हैं (अभि+वि+नी)। १८–इस देर से देखे गये ( व्यक्ति) के पास फिर कैसे पहुंचना चाहिये (उप+नी)। 16-* वह ईश्वर तुम्हारी तामसी प्रकृति को दूर करे (वि+अप+नी) ताकि तुम सन्मार्ग का दर्शन कर सको। संकेत-१-उपनय रथं यावदारोहामि (उपश्लेषय स्यन्दनं......)। २एहि, त्वामुपनेष्ये, न सत्यादगा इति / ६-रामः सीतां परिणिनाय / परि+ नी का मूल अर्थ अग्नि के चारों ओर ले जाना है। इस कार्य में 'वर' कर्ता है, और 'वधू' कर्म रूप में ले जाया गया व्यक्ति है। हमारी यह मार्य प्रणाली है और हम इसके विपरीत नहीं जा सकते / एवं परिणयविधि में वधू को कर्तृता को कल्पित कर "सीता रामं परिणिनाय" ऐसा प्रयोग करने वाले संस्कृत वाग्धारा अथवा आर्ष-संस्कृति का गला घूट देते हैं। पुरुष 'वर' के रूप में परिणेतृ' है और वधू परिणीता है। १०–अवदातेनानेन चरितेन कुलमुन्नेष्यसि / ११-मुहम्मदानुगानां सविशेष-समादरे राज-मन्त्रिणां कोऽभिप्राय इति न दुष्करमुन्नेतुम् / १६-ततः स हस्तौ समानीय (करौ सम्पुटीकृत्य) गुरुं प्रणनाम, गुरुश्च तमाशिषाऽऽशशासे (गुरुश्च तस्मा आशिषोऽभ्युवाद)। अभ्यास-४५ (स्था= ठहरना) १-महाराज श्रीराम के राज्याभिषेक उत्सव में लङ्का युद्ध में सहायक अनेक १–मनोवृत्ति-स्त्री। २-२-समृध्यन्ति, समधन्ते, आप्यायन्ते / 3-3 सोऽसाधुदर्शीति / ४--ह्रीमती, प्रपत्रपिष्णुः, ह्रीनिषेवा-वि०। ५-उत्सव, उद्धव, उद्धर्ष, मह-पु० / ६-६-लङ्कासमरसुहृदः /
SR No.032858
Book TitleAnuvad Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharudev Shastri
PublisherMotilal Banarsidass Pvt Ltd
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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