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________________ ( 86 ) ६-रघु के ब्रह्मपुत्र पार कर चुकने पर प्राग्ज्योतिष का राजा भय से कांप' उठा / ७-क्या तुम कलिंग देश में रहे थे ? नहीं. मैं वहाँ गया तक नहीं। ८-*कहते हैं जब मैं पागल थी, तो मैंने उसके सामने बहुत प्रलाप किया। ह-जब राम इस पृथ्वी पर राज्य करता था', प्रजा बहुत प्रसन्न थी। १०-पुराने लोगों का दूसरी बातों में विवाद होने पर भी पुनर्जन्म के विषय में कोई मतभेद नहीं था। ११-दिलीप ने रघु को राज्य सौंपा', और स्वयं जंगल को चला गया। १२-*जब निकुम्भ के प्राण निकल गये तो प्रसन्न हुए वानरों ने शोर मचाया, दिशायें गूंज उठी पृथिवी काँप सी उठी, आकाश मानो गिर गया और राक्षसों के सेना दल में भय समा गया। १३निर्वासित किये हुए पाण्डव काम्यक, दूत आदि वनों में रहे और तेरहवें वर्ष उन्होंने अज्ञातवास किया। संकेतलिट्लकार उस भूतकालिक क्रिया को कहता है जो आज से पहले समाप्त हो चुकी हो, और जिसे वक्ता ने स्वयं न देखा हो। यथा-१जधान कंसं किल वासुदेवः / २-समुद्रगुप्तः सम्राडश्वमेधेनेजे (ईजे) तदात्मजः कुमारगुप्तोऽपि / यहाँ "अश्वमेधेन" में तृतीया के प्रयोग पर ध्यान देना चाहिए[]। ३-भूतभावनः परमेष्ठी मुनिभिऋषिभिश्च समं ब्रह्मोद्याः कथाः कुर्वन्पद्मविष्टरे समासाञ्चक्रे / उत्तमपुरुष में भी लिट् का व्यवहार होता है। यदि पूर्णरूप से किसी बात का इन्कार (अत्यन्तापलाप) किया जाय, या कहने वाले को उत्तेजना अथवा उन्माद के कारण अपने किये काम का ध्यान न रहे तो लिट का प्रयोग निधि होता है / देखिये -'क्या तुम कलिंग देश में रहे थे? इस प्रश्न के उत्तर में 'नहीं, मैं वहाँ गया तक नहीं उस वाक्य में पूर्ण इनकार पाया जाता है। उपर्युक्त दोनों वाक्यों का अनुवाद इस प्रकार होगा-कलिङ्गष्ववात्सीः किम् ? नाहं कलिङ्गाञ्जगाम / 1 कम्प, व्यथ, उद् विज् / 2--2 वसुमती शशास / 3 नन्द / 4 अर्पयाम्बभूव, न्यास / 5 प्रतस्थे / 6 ऊषुः (वस् भ्वा० प०), वनान्यध्यूषुः / 7-7 अवरुद्धा विचेरुः / [] अश्वमेध को फल की सिद्धि में करण मानकर ऐसा प्रयोग होता था। इस प्रयोग को सूत्रकार भी अपने 'करणे यजः' (3 / 2 / 85) इस सूत्र से प्रमाणित करते हैं।
SR No.032858
Book TitleAnuvad Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharudev Shastri
PublisherMotilal Banarsidass Pvt Ltd
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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