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________________ ( 74 ) तेज प्रांधी चल रही है / 8-* जो मान योग्य हैं, उनका मान करो, शत्रों को भी अनुकूल बनायो पौर विनय दिखायो। ह-अपने पिता की माज्ञा लेकर जामो। १०–बाग में जामो, कुछ फूल चुनो और मेरे लिये 'एक हार बनायो / 11 -हे देवदत्त ! तुम जुग 2 जीपो, तुम अपने आपको जोखम में डालकर मेरे बच्चे की जान बचाई। १२-रात उतर आई है। गौमों को गोशाला में बन्द कर दो। और द्वार बन्द कर दो। १३—तुम्हारे इस उत्साह पर धिक्कार हो, इसने मेरा जीना दूभर कर दिया है / १४तुम मनुष्य की पूर्ण मायु को प्राप्त होवो, जिससे तुम देश जाति और धर्म की सेवा कर सको। १५-विवश हुमा मनुष्य कभी जन्म लेता है, कभी मरता है और इस प्रकार आवागमन के चक्कर में पड़ जाता है। १६-ध्यान रखो यह लम्पट हमारी वस्तुओं के पास न फटकने पाये / १७-आज का काम कल पर मत छोड़ो, इससे काम कभी समाप्त होने में नहीं आता। १८-सावधान रहो, शत्र तुम्हारी घात में है। 16-* श्वेतकेतो, ब्रह्मचर्य धारण करो, हमारे कुल में वेद न पढ़कर ब्रह्मबन्धु सा कोई नहीं होता। ___ संकेत-१ धर्मे ते धीयतां धीः सत्ये च निस्तिष्ठतु / ४-व्यादेहि मुखम्, सेक्ष्याम्यौषधम् / ५-तन्तुवाय ! मत्कृतेऽस्य सूत्रस्य शाटकं वय / 6-- गन्तुमिच्छसि चेत् पितरमनुमानय ( पितरमनूमान्य याहि ) / ११-देवदत्त, पुरुषायुषं जीवतात् ( सर्वमायुरिहि ) / १२--अवतीर्णा ( उपस्थिता) रजनी, देहि ( पिधेहि ) च द्वाराणि / व्रजमवरुन्धि गाः। १५-जायस्व म्रियस्वेत्येवं संसरत्यवशो देही। १६--प्रतिजागृहि, अयं लम्पटोऽस्माकमुपकरणजातं मोपसर्पतु / प्रतिपूर्वक जागृ के अर्थ पर ध्यान देना चाहिये / 'अवेक्षा प्रतिजागरः'अमर० / १७-अद्यतनं कार्यं श्वः करिष्यामीति माऽदः परिहर ।१८-सावधानो भव, शत्रुनिभृतमवसरं प्रतीक्षते / १६--वस ब्रह्मचय्यं श्वेतकेतो। यहाँ वस् का अर्थ आचरण करते हुए रहना है। जैसे 'भिक्षामट'—यहाँ भट् का मांगते हुये घूमना है। प्रतः वस के अन्दर छिपी हुई चर् धातु का कर्म होने से ब्रह्मचर्यम् में द्वितीया हुई / वस = चरन वस / अभ्यास-२३ ( लोट् लकार) १-पात्रो, हम इस मकान का सौदा करें / २--'नकली वस्तुओं १-वात्या स्त्री० / 2-2 मालां ग्रथान / हार संस्कृत में मुक्ताहार को कहते हैं / 3-3 इदं गृहं क्रीणाम / ४-अनुकृतिनिवृत्तेषु वस्तुषु /
SR No.032858
Book TitleAnuvad Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharudev Shastri
PublisherMotilal Banarsidass Pvt Ltd
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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