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________________ ( 55 ) भोगपती सममृज्यन्त मार्गाः प्रोक्ष्यन्त च / यदि किसी धातु के पूर्व कोई उपसर्ग लगा हो, तो पहिले उस धातु का ललकार का प्रयोग बना कर बाद में उस प्रयोग के पूर्व उपसर्ग लगाया जाता है। जैसे ऊपर के वाक्य में 'मृज' का लङ् (कर्मवाच्य लकार) का प्रथम पुरुष बहुवचन' 'अमृज्यन्त' बना, और उसके पूर्व 'सम्' उपसर्ग लगाकर सममृज्यन्त बना / वैसे ही उक्ष 'का लङ, (कर्मवाच्य) प्रोक्ष्यन्त' हुमा और फिर 'प्र' उपसर्ग लगाकर "प्रोक्ष्यन्त" बना। १२-मन्त्रिणो राजद्रोहिणामासेधमादिशन् / १६-अनुष यते पायेष्वगस्त्यो नामपिरिदम्प्रथमतया विन्ध्यगिरिमत्ययात् / अभ्यास-६ ( लल्लकार) १-राम और सुग्रीव में मित्रता बढ़ गयी। क्योंकि दोनों का कार्य एक दूसरे की सहायता से बनता हुआ दीखा। २-रात में अन्धेरा फेला प्रा था, और हम राह भटक गये / ३-देवतामों से समुद्र से मकर अमृत' निकाला गया और मापस में बांट लिया गया। ४-जिन्हों ने डींग मारी (जो अपने मुंह मियाँ मिठू बने ) वे नष्ट हो गये। ५-सूर्य अब पश्चिम में मस्त हो रहा था, तो वह जल्दी-जल्दी अपने घर की मोर चला। ६दिन छिपे (घर) पाए हुए यात्री का जंगल निवासियों ने पूरा सत्कार किया ।७-हनुमान् और दूसरे वानरों ने सीता की खोज में सारा बन छान मारा, पर सीता का कुछ पता न चला। ८-मेरी अंगुली में सुई चुभ गई। जिससे अभी तक दर्द हो रही है।६-मैं संसार में देर तक घूमा,इसी लिये मैं इस विचित्र सृष्टि के सौन्दर्य को जान सका हूँ। १०-नगर शत्रमों से घेरा गया मौर इसका सर्वस्व लूटा गया। ११-एकाएक बारिश मा गई और सब गड़बई मच गई / १२-पृथ्वी ने जंभाई ली, और हजारों लोग मान की आन में इसके बीच समा गये। १३-उस समय मुझे नींद नहीं भा रही थी, मैं देर तक आंख मूंदे बिस्तर में लेटा रहा। और वही चिन्ता देनेवाली पुरानी १-मैत्री स्त्री०, मैत्र्य, मंत्रक, सल्य-नपु० / २-अमृत, पीयूषनपु० / सुधा-स्त्री० / ३–रुभ् / ४-मुष् क्रया० / ५-प्र वृष भ्वा० / ६-संकुल-न /
SR No.032858
Book TitleAnuvad Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharudev Shastri
PublisherMotilal Banarsidass Pvt Ltd
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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