________________ नित्य नियम पूजा ....................63, मुनिमन सम उज्ज्वल नीर, प्रांसुक गंध भरा / भरि कनक कटोरि धीर दीनों धार धरा / चौबीसों श्रीजिनचन्द आनन्दकन्द सही। __पद जजत हरत भवफंद, पावत मोक्षमही / 1 // ॐ ह्रीं श्री वृषभादि-वीरांतेभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं नि: गोशीर कपूर मिलाय, केशर रंगभरी / जिनचरणन देत चढ़ाय, भव आताप हरी। चौबीसो चंदनं। तंदुल सितसोमसमान, सुन्दर अनियारे / मुक्ताफलकी उनमान, पुजधरों प्यारे / चौबीसो अक्षतं // वरकंज कदंब कूरंड. सुमन सगंध भरे / जिन अग्र धरो गुनमंड, काम कलंक हरे / / चौ०। पुष्पं / / मन मोहन मोदक आदि. सुन्दर सद्य बने / रसपूरित प्रासुक स्वाद जजत क्षुधादि हने ।।चौ०। नैवेद्य। तमखंडन दीप जगाय, धारो तुम आगे / सब तिमिर मोह क्षय जाय, ज्ञानकला जागे ।चौ० ॥दीपं / दशगंध हुताशनमांहि, हे प्रभु खेवत हों। मिस धूम करम जरि जाहिं तुमपद सेबत हों / चौ० / धूपं / / शुचि पक्व सुरस फल सार सब ऋतुके ल्यायो / देखत दृगमनको प्यार, पूजत सुख पायो * चौ० ||फलं।। जल फल आठों शुचि सार ताको अर्घ करो। तुमको अरपो भवतार, भव तरि मोक्ष वरों ।.चौ० ॥अध्यं /