________________ नित्य नियम पूजा निरभोग सुभोग वियोगहरे, निरजोग अरोग अशोग धरे। भ्रमभंजन तीक्षण सायक हो, सब० // 11 // जय लक्ष्य अलक्ष्य सुलक्ष्यक हो, जय दक्षक पक्षक रक्षक हो। पण अक्ष प्रतक्ष खपायक हो, सब० / 15 // निरभेद अखेद अछेद सही, निरवेद अवेदन वेद नहीं। सबलोक अलोकहि ज्ञायक हो, सब० // 13 // अमलीन अदीन करीन हने, निजलीन अधीन अछीन बने। जमको घनघात बचायक हो, सब० // 14 // न अहार निहार विहार कब, अविकार अपार उदार सबै / जगजीवनके मन भायक हो, सब० // 15 // अप्रमाद अमाद सुस्वादरता, उनमाद विवाद विषादहता। समता रमता अकषायक हो, सब० / 16 // असमंद अधंद अरन्ध भये निरबन्ध अखन्द अगन्ध ठये / अमनं अतनं निरवायक हो, सब० / 17 निरवर्ण अकर्ण उधर्ण वली, दुखहर्ण अशर्ण सुशर्ण भली / बलि मोह की फौज, भगायक हो सब० / / 18 / / परमातम पूरन पायक हो, सब० / 19 / / विररूप चिद्रूप स्वरूपद्युति, जसकूप अनूपम भूप भुती / कृतकृत्य जगत्त्रयनायक हो सब० // 20 //