________________ '50 ] नित्य नियम पूजा तीस चौबीसीका अर्घ द्रव्य आठों जु लीना है, अर्घ करमें नवीना है। पूजता पाप छीना है, 'भानुमल' जोर कीना है / दीप अढाई सरस राजै, क्षेत्र दश ता विषे छाजे / सात सत बीस जिनराजे, पूजतां पाप सब भाजै / / ह्रीं पांच भरत पांच ऐरावत दश क्षेत्रके विष तीस चौबीसीके सातसौ बीस जिनबिम्बेभ्योऽयं निर्मपामीति स्वाहा। विद्यमान बीस तीर्थंकरोका अर्थ उदक-चंदन-तंदुल-पुष्पकैश्चरू-सुदीप-सुधूप-फलार्धकः / "धवल-मंगल-गान-रवाकुले जिनगृहे जिननाथमहं यजे :1|| ॐ ह्रीं सीमंधर-युगमंधर-बाहु-सुबाहु-संजातक--स्वयंप्रभऋषभानन-अनंतवीर्य-सूरप्रभ-विशालकीर्ति-वज्रधर-चंद्रानन-- भद्रबाहु-भुजङ्गम-ईश्वर नेमिप्रभ वोरसेन-महाभद्र-देवयशोऽजितवीर्यति विशति-विद्यमान तीर्थङ्करेभ्योऽध्यं निर्वपामीति / कृत्रिम व अकृत्रिम चैत्यालयोके अर्ध कृत्याकृत्रिम-चारु-चैत्यनिलयान् नित्यं त्रिलोकीगतान् / वन्दे भावनव्यंतरान् द्युतिबरान् स्वर्गामरावासगान् / सद् गन्धाक्षत-पुष्पदाम चरुकैः, स दीप-धूपैः फलैंः / द्रव्यैर्नीरमुखैयंजामि सततं दुष्कर्माणां शान्तये / 15 ॐ हीं कृतिमाकृत्रिमचैत्यालय-संबंधिजिनबिबेभ्यो अर्घ निर्व। वर्षेषु वर्षान्तर पर्वतेषु नन्दीश्वरे यानि च मंदरेषु / थावंति चैत्यायतनानि लोके, सर्वाणि बन्दे जिनपुगवानां 2