________________ नित्य नियम पूजा [43, शुभ समवशरण शोभा अपार,शत इन्द्र नमत कर शीसधार / देवाधिदेव अरिहंत देव, वन्दों मन-वच-तनकरि सुसेव / / 3 // जिनकी धुनि ह ओंकार रूप, निर अक्षरमय महिमा अनप / दशअष्ट महाभाषा समेत, लघुभाषा सात शतक सुचेत // 4 // सो स्याद्वादमय सप्त भङ्ग गणधर गूथे बारह सु अङ्ग / रवि शशि न हरै सो तम हराय सोशास्त्र नमो बहुप्रीति ल्यायः गुरु आचारज उवझाय साध,तन नगन रतनत्रय निधि अगाध संसार देह वैराग्य धार, निरवांछि तपै शिवपद निहार 6 // गुण छत्तिस पच्चिस आठ बीस, भवतारण-तरन जिहाज ईस। गुरुकी महिमा वरनी न जाय, गुरुनाम जपों मन-वचन-काय 7 सोरठा कीजै शक्ति प्रमान, शक्ति विना श्रद्धा धरै / 'द्यानत' श्रद्धावान, अजर अमरपद भोगवे / / * ह्रीं देवशास्त्रगुरुभ्यो: जयमाला पूर्णाध्यं निर्वपामीति स्वाहा / बीस तीर्थङ्कर भाषा पूजा दोहा- दीप अढाई मेरू पन, अरू तीर्थंकर बीस / तिन सबकी पूजा करूँ, मनवचतन धरि शीस / / ह्रीं विद्यमानविंशति तीर्थङ्कराः अत्र अवतर२ संवौषट् स्थापन ह्रीं विद्यमानविंशति तीर्थङ्कराः अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः / ॐ ह्रीं विद्यमानवितितीर्थङ्कराः अत्र मम सन्निहितो भवर वषट् .