________________ 42 ] नित्य नियम पूजा दोहा-अग्नि माहिं परिमल दहन, चन्दनाद गुणलीन / ____जासों पूजी परमपद, देव शास्त्र गुरु तीन / 7 / ॐ ह्रीं देवशास्त्रगुरुभ्यो अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्व स्वाहा / / 7 / / लोचन तु रसना घ्राण उर, उत्साहके करतार है / मो न उपमा जाय वरणी, सकल फल गुणसार हैं / सो फल चढ़ावत अर्थपूरन, परम अमृतरस सचू / अरिहन्त श्रुत सिद्धांत गुरु निर्ग्रन्थ नित पूजा रचू / / दोहा-जे प्रधान फलविष, पञ्चकरण रस लीन / जासों पूजों परमपद, देव शास्त्र गुरु तीन // 8 // ॐ ह्रीं देवशास्त्रगुरुभ्यो मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्व० स्वाहा / 80 जल परम उज्जवल गन्ध अक्षत, पुष्प चरु दीपक धरु / वर धूप निर्मल फल विविध, बहु जनमके पातक हरू / / इह भांति अर्घ चढाय नित भवि, करत शिवपंकति मच। अरिहन्त श्रुत सिद्धांत गुरु निर्गन्थ नित पूजा रच। दोहा-सुविधी अर्घ संजोयके अति उछाह मन कीन / जासों पूजों परमपर देव शास्त्र गुरु तीन / 9 / / ॐ ह्रीं देवशास्त्रगुरुभ्यो अनयंपद प्राप्तये अर्घ निर्ग. स्वाहा / / 9 / // अथ जयमाला दोहा / / देव शास्त्र गुरु रतन शुभ तीन रतन करतार / भिन्न भिन्न कहूँ आरती अल्प सुगुण विस्तार // 1 // // पद्धरि छन्द // चौ कर्मसु त्रेसठ प्रकृति नाशि, जीते अष्टादश दोषराशि। जे परमसुगुण है अनंत धीर, कहवतके छयालिस गुण गंभीर / /