________________ 216 / नित्य नियम पूजा जल गन्ध सु अक्षत पुष्प चरुवर जोर करों। ले दीप धूप फल मेलि आगे अर्ज करों / / चांदन / अर्थ / / टोंकके चरणोंका अर्घ / जहां कामधेनु नित आय दुग्ध जु बरसावं / तुम चरण दरशन होत, आकुलता जावै / / जहां छतरी बनी विशाल, अतिशय बहु भारी / हम पूजत मन वच काय, तजि संशय सारी / चांदन. || ह्रीं टोंकमें स्थापित श्री महावीर चरणेभ्यो नमः अघी ___टीले में विराजमानका अघ / टीले के अन्दर आप सोहे पद्मासन, जहां चतुरनिकाई देव, आवे जिन शासन / नित पूजन करत तुम्हार कर में ले झारी. ___ हम हूँ वतुद्रव्य बनाय, पू भी थारी ||चांदन.।। ह्रीं श्रीचांदनपुर महावीरजिने टीले में विराजमान समयकाsic पंचकल्याणक / कुण्डलपुर नगर मंझार त्रिशला उर आये / सुदि छठि अषाढ सुर आय, रतनजु बरसायो चांदन. ॐ ह्रींश्रीमहावीर जिनेंद्राय आषाढशुक्लाषष्ठयांगर्भमंगलप्राप्ताया जनमत अनहद भई घोर, आय चतनिकाई। तरस शक्लाको चैत्र, सुरगिरी ले जाई / / चांदन. // ह्रीं श्रीमहावीरजिनेंद्रायचैत्रशुक्लात्रयोदश्यां जन्ममंगलप्राप्तायाधी कृष्णा मगसिर दश जान, लौकान्तिक आये। करि केशलोंच तत्काल, झट वनको धाये / चांदन. ह्रीं श्रीमहावीरजिनेंद्राय मगसिरकृष्णादश्यांतपोमंगलप्राप्ताया