________________ नित्य नियम पूषा सजीव या करणम् / अंत समाहि मरण च जीवदया करणम् / अंते समाहि मरणं, चउविह-दुक्खं णिवारेई / 7 // // इति तत्वार्थ-सूर्य समाप्तम् / / बारह भावना / (भूधरदास कृत) दोहा-राजा, राणा, छत्रपति, हाथिनके असवार / मरना सबको एक दिन, अपनी-अपनी बार / 1 // दल-बल देई-देवता, मात-पिता परिवार / मरती बिरियां जीवको, कोई न राखनहार / 2 / / दाम विना निर्धन दुखी, तृष्णावश धनवान / कहूँ न सुख संसारमें, सब जग देख्यो छान / 3 // आप अकेले अवतरै, मरै अकेलो होय / यों कवहूँ इस जीवको, साथी-सगा न कोय // 4 // जहाँ देह अपनी नहीं, तहां न अपनो कोय / घर-सम्पत्ति पर प्रगट ये, पर हैं परिजन लोय / / 5 / / दिपै चाम चादर मढ़ी, हाड पिंजरा देह / भीतर या सम जगतमें, अवर नहीं धिन गेह // 6 // सोरठा-मोह नींदके जोर, जगवासी धूमै सदा।। कर्म चोर चहुँ ओर, सरबस लूटै सुध नहीं | // 7 // सतगुरु देय जगाय, मोह-नींद जब उपशमै / तप कछु बनहिं उपाय, कर्म-चोर आवत रुकै 8