________________ नित्य नियम पूजा [ 187 कुन्दावदात-चल-चामर-चारु-शोभ, विभ्राजते तव वपुः कलधौत-कांतम् / उद्यच्छशांक-शुचि-निर्झरवारि-धार मुच्चौस्तटं सुरगिरेरिव शातकौम्भम् // 30 // छत्रत्रयं तव विभाति शशांककांतमुच्चैः स्थितं स्थगित-भानु-कर-प्रतापं / मुक्ता-फल प्रकर-जाल-विवृद्ध-शोभ, प्रख्यापयत्त्रिजगतः परमेश्वरत्वम् // 31 / गंभीरतार-रव-पूरित-दिविभागस्ौलोक्य लोक-शुभ-संगम-भूति-दक्षः / सद्धर्मराज-जय-घोषण-घोषकः सन, खे दुन्दुभिर्ध्वनति ते यशसः प्रवादी // 32 // मंदार-सुन्दर-नमेरु-सुपारिजातसंतानकादि-कुसुमोत्कर-वृष्टिरुद्धा / गंधोद-बिन्दु-शुभ-मन्द-मरूत्प्रपाता, दिव्या दिवः पतति ते वचसा ततिर्वा | // 33 // शुम्भत्प्रभा-वलय-भूरि-विभा-विभोस्ते, लोकत्रये द्युतिमतां द्युतिमाक्षिपन्ती। प्रोद्यहिवाकर-निरंतर-भूरि-संख्या, दीप्त्या जयत्यपि निशामपि सोम-सौम्यां / 34: