________________ 170 / नित्य नियम पूजा तुम शांति पांचकल्याण पूजों, शुद्ध मनवचकाय जू / दुर्भिक्ष चोरी पाप लाशन विधन जाय पलाय जू / / 5 / / तुम बालब्रह्म विवेकसागर, भव्य कमल विकासनों : श्री नेमिनाथ पवित्र दिनकर, पापतिमिर विनाशनो / 6 / / जिन तलि राजुल राजकन्या, कापसेन्या बस करी / चारित्र रथ चढि होय दुलह, जाय शिवरमणी वरी / 7 / कंदर्प दर्ण सुसलिच्छन कमठ शठ निर्मद कियो / अश्वसेन नन्दन जगतवन्दन, सकल संघ मङ्गल कियो / 81 जिनधरी बालकपणे दीक्षा, कमठ मान विदारकै / / श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्र के पद, मैं नमो शिरधारकै / 9 / तुम कर्मघाता मोक्षदाता, दिन जानि दया करो। सिद्धार्थनन्दन जगतवन्दन, महावीर जिनेश्वरा || छत्र तीन सोहे सुरनर माहे, बीनती अब धारिये करजोडि सेवक बीनवे प्रभु, आवागमन निवारिये 111: अब होउ भव भव स्वामि मेरे मैं पदा सेवक रही। करोडि यो वरदान मांगू मोक्षफल जाना लाहौं / / 12 जो एक मांही एक राजे एक मांही अनेकनों / इक अनेक की नहीं संख्या, नमूसिद्ध निरजनो / 13 // चौपाई मैं तुम चरण कमल गुण गाय, बहुविधि भक्ति करो मनलाय जनम जनम प्रभु पाऊँ तोहि, यह सेवाफल दीजे मोहि / 14