________________ . नित्य नियम पूजा [169 भजन नाथ ! तेरी पूजाको फल पायो,मेरे यो निश्चय अब आयो / मेढक कमल पाखडी मुख ले वीर जिनेश्वर धायो। . श्रेणिक गजके पग तल मुवो, तुरत स्वर्गपद पायो / नाथ.॥ मैंनासुन्दरी शुभ मन सेती, सिद्धचक्र गुण गायो / अपने पतिको कोढ गमायो, गंधोदक फल पायो / / नाथ.॥ अष्टा पदसे भरत नरेश्वर आदिनाथ मन लायो / अष्टद्रब्यसे पूज्य प्रभुजी, अवधि ज्ञान दरशायो / नाथ.॥ अंजनसे सब पापी तारे, मेरो मन हुलसायो / महिमा मोटी नाथ तुम्हारी मुक्तिपुरी सुख पायो / नाथ.॥ थकि थकि हारे सुर नर खगपति, आगम सीख जतायो। 'देवेन्द्रकीर्ति' गुरुज्ञान 'मनोहर' पूजा ज्ञान बतायो ।नाथ.॥ // स्तुति // तुम तरणतारण भवनिवारण भविक मन आनन्दनो। श्री नाभिनन्दन जगत वन्दन, आदिनाथ निरंजनो // 1 // तुम आदिनाथ अनादि सेऊ, सेय पदपूजा करू। कैलास गिरिपर ऋषभ जिनवर, पदकमल हिरदै धरु // 2 // तुम अजितनाथ अजीत जीते अष्टकर्म महाबली / यह विरद सुनकर शरण आयो, कृपा कीज्यो नाथजी / / 3 / / तुम चन्द्रवदन, सुचन्द्रलच्छन, चन्द्रपुरी परमेश्वरो / महासेननन्दन जगतवन्दन चन्द्रनाथ जिनेश्वरो // 4 //