________________ नित्य नियम पूजा....................! 157.. [ 157 . घत्ता मुनिवर गुणधारक पर उपकारक भवदुत हारक सुखकारी। वे करम नशायें सुगुण दिलायें मुक्ति मिलायें भवहारी / / ॐ ह्रीं अकम्पनाचार्यादि सप्तशतमुनिभ्यो महाघ निन / सोरठा-श्रद्धा भक्ति समेत जो जन यह पूजा करें। ___ वह पाये निज ज्ञान, उसे न व्यापे जगत दुख / / ___ इत्याशीर्वादः / चौसठ-ऋद्धि (समुच्चय पूजा / गीता छन्द संसार सकल असार जामें सरता कछु है नहीं, धनधान धरणी और गृहणी त्यागी बीनी वनमही। ऐसे दिगम्बर हो गये, अरु होयंगे बरतत सदा,. इत थापि पूजों मन वचन करि देहु मंगल विधि तदा // 1 // ॐ ह्रीं भूतभविष्यद्वर्तमानकालसंबंधि पंचप्रकारसर्गऋषिश्वराः अत्र अवतर अवतर संवौषट् / अत्र तिष्ठ 2 ठः ठः स्थापनं : अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम् / चाल-रेखता लाय शुभ गंगजल भरिकै कनक भृगार धरि करिकै / जन्म जरामृत्यु के हरनन, यजो मुनिराजके चरणन // 1 // ॐ ह्रीं भतभविष्यद्वर्तमानकालसंबंधिपुलाकबकुशकुशीलनिग्रंथस्ना तकपंचप्रकार सर्वमुनिश्वरेभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जल निक