________________ 148 ] नित्य नियम पूजा अवधिधार मुनिराजजी कहे, पूर्व कृत कर्म उनके बच अनुसार सौं, हरे हृदय को भर्म / समुच्चय पूजा / दोहा-अक चन्द्र कुज सोम गुरु, शुक्र शनिश्चर राहु / केतु ग्रहारिष्ट नाशने, श्री जिन पूज रचाहूँ / ॐ ह्रीं सर्वग्रह अरिष्ट निवारक चतुर्विंशति जिन अत्र अवतर 2 संवौषट् आह्वाननं। अत्र तिष्ठ 2 ठः ठः स्थापन अत्र मम सन्निहितो भव 2 वषट् सन्निधिकरणं / अधक-गीतीका छन्द / क्षीर सिंधु समान उज्वल, नीर निर्मल लांजिये / चौबीस श्रीजिनराज आगे, धार त्रय शुभ दीजिये / रवि सोम भूमिज सौम्य गुरु कवि, शनि नमो पूतकेतवे / पूजिये चौबीस जिन, ग्रहारिष्ट नाशन हेतवै / ॐ ह्रीं सर्वग्रहारिष्ट निवारक श्र चतुविशति तोर्थक र जिनेंद्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय जलं निर्वपामीति स्वाहा / श्रीखंड कुमकुम हिम सुमिश्रित, घिसों मनकरि चावसौं / चीवीस श्रीजिनराज अघहर, चरण चरचों भावसौं ।रवि. चं. अक्षत अखंडत सालि तंदुल, पुज मुक्ताफलसमं / चौबीस श्रीजिनराज पूजत,नाश ह नवग्रह भ्रम ।रवि. अ. कुद कमल गुलाब केतकी, मालती जाही जूही / काम बाण विनाश कारण, पजि जिननाला नही रवि. पुष फोजी हा मा पार, लै मोहक वर / शाद्र आकनिय विजाक्षम कब मुखको वि.ने