________________ 'नित्य नियम पूजा........................... 14... “अडिल्ल-जो पूजै मनलाय भव्य पारस प्रभु नितही, ताके दुख सब माय भीत व्यायै नहिं कीतही / सुख संपति अधिकाय पुत्र मित्रादिक सारे, अनुक्रमसौ शिव लहै 'रतन' इमि कहै पुकारे / 20 इत्याशीर्वादः (पुष्पांजलि) नवग्रह अरिष्ट निवारक पूजा / श्लोक-प्रणम्याद्यन्ततीर्थेशं, धर्मतीर्थप्रवर्तक / भव्यविघ्नोपशान्त्यर्थं ग्रहाा वर्ण्यते मया // मार्तण्डेन्दुकुजःसौम्य, सूरसूर्यकृन्तान्तकाः / राहुश्च केतुसंयुक्तो, ग्रहशान्तिकरा नव // दोहा-आदि अन्त जिनवर नमो, धर्मप्रकाशन हार / भव्य विघ्न उपशांतको, ग्रहपूजा चित धार / / काल दोष प्रभावसों, विकलप छुटे नाहिं / जिन पूजामें ग्रहन की पूजा मिथ्या नाहिं / / इसही जम्बूद्वीपमें, रवि शशि मिथुन प्रमान / ग्रह नक्षत्र तारा सहित, ज्योतिश्यचक्र प्रमान / / तिनही के अनुसार सौं, कर्म चक्र की चाल / सुखदुख जाने जीवको, जिन वच नेत्र विशाल / ज्ञान प्रश्न व्याकरण में, प्रश्न अंग है आठ / भद्रबाहु मुख जनित जो, सुनत कियो मुख पाठ / /