________________ 136 / नित्य नियम पूजा अरिहन्त सिद्ध आचार्य उपाध्याय सुपद सब साधही / पूजू सदा मन वचन तन तें, हरो मो भव बाध ही / / ॐ ह्रीं श्री अरहन्त सिद्ध आचार्य उपाध्याय सर्वसाधुभ्यो जन्मजरामृत्य विनाशनाय जलं निर्वपामी ति स्वाहा / मलय माहि मिलाय केशर, घसों चंदन बारना। भृगार भरिकरि चरण पूजन, भवआताप नसावना अ.चंदनं अक्षत अखंडित सुरभि श्वेत हि, लेत भरि करि थालही। जे जजै भविजन भाब सेती, अक्षयपद पावै सही अरि.अथतं स्वर्ण रूप्यमय मनोहर, विविध पुष्प मिलाइये / भरि कनकथाल सु पूजि है,भवि समर-धान नशाइये ।अ.पुष्पं बहु मिष्ट मोदक मुष्ट फेनी, आदि बहु पकवान ही। भरिथाल प्रभु जमैं विधतै, नसें क्षत दुखनाशही अरि.नवेद्य मणि स्वर्ण आदि उद्योत कारण, दीप बहुविधि लीजिये / तम मोह पलट विध्वंसने,जुग पाद पूजन कीजिये ।अरि.दीपं कपूर अगर सुगन्य चंदन, कनक धूपायन भरें। भवि करहि पूजा भाव सेती, अष्ट कर्म सब जरै अ. धूप। बादाम श्रीफल लौंग खारिक, दाख पुंगी आदि ही। भरिथाल भविजन पूज करित, मोक्षफल पावै सही ।अ.फलं जल गंध अक्षत पुष्प चरु ले, दीप धूप फलो गही / करि अर्घ पू0 पंचपद को, लहैं शिवसुख वृन्द ही / अहि.अर्घ जयमाला दोहा-नम् प्रथम अरिहन्त सिद्ध, आचारज उवझाय / __ साधु सकल बिनती करू, मन वच तन शिरनाय / /