________________ नित्य नियम पूजा [ 131 शुचि शीतल सुरभि सुनीर, लायो भर झारी / दुख जामन मरन गहीर, याको परिहारी / श्री वासुपूज्य मलि नेम, पारस वीर अति / नमु मन वच तन धरि प्रेम, पांचों बालयति / ॐ ह्रीं श्री वासुपूज्य, मल्लिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ मृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा / चन्दन केशर करपूर जल में घसि आनो / भव तप भंजन सुखपूर, तुमको मैं जानो // श्रीवासु. चंदनं वर अक्षत विमल बनाय, सुवरण थाल भरे वह देश देशके लाय, तुमरी भेट धरे। बासु. / / अक्षतं / / यह काम सुभट अति सूर, मनमें क्षोभ करो। मैं लायो सुमन हजूर, याको वेग हरो / श्रीवासु. / पुष्पं / / पटस परित नैवेद्य, रसना सुखकारी। द्वय करम वेदनी छेद, आनंद ह भारी / श्रीवातु. नैवेद्यं // धरि दीपक जगमग ज्योति तुम चरनन आगे। मम मोह तिमिर क्षय होत, आतम गुण जागे॥श्रीवासु.दीपं -ले दशविधि धूप अनूप, खेऊ गन्ध मयी। दशगंध दहन जिन भूप, तुम हो कर्मजयी ।श्रीवासु. धूपं। पिस्ता अरु दाख बदाम, श्रीफल लेय घने / तुम चरण जजूगुणधाम,द्योसुख मोक्ष तने ।श्रीवासु. फलं॥ सजि वसुविधि द्रव्य मोनज्ञ, अरघ बनावत है। वसुकर्म अनादि संयोग, ताहि नसावत हैं ।श्रीवासु.||अघं।