________________ नित्य नियम बूजा.....................[ 193. मति सागर इक सेठ कथा ग्रंथन कही। उनही ने यह पूजा कर आनन्द लही / / ताते रविव्रतसार, सो भविजन कीजिये / / सुख सम्पति संतान अतुल निधि लीजिये। दोहा-प्रणमों पार्श्व जिनेशको, हाथ जोड शिर नाय / परभव सुखके कारने, पूजा करू बनाय / / रविवार व्रतके दिना, एहीं पूजन ठान / ता फल स्वर्ग सम्पति लहै, निश्चय लीजे मान / ॐ ह्रीं पार्श्वनाथ जिनेंद्र / अत्र अवतर अवतर संवौषट आह्वाननं / अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः प्रतिष्ठापनं / अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणं / / उज्ज्वल जल भरके अति लायो रतन कटोरन माहीं / धार देत अति हर्ष बढावत जन्म जरा मिट जाहीं // पारसनाथ जिनेश्वर पूजों रविव्रत दिन भाई / सुख सम्पति बहु होय तुरत ही आनन्द मंगल दाई / / ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्रायजन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं / / मलयागिरि केशर अति सुन्दर कुकुम रंग बनाई। धार देत जिनचरन आगे, भव आताप नशाई / पारस चंदनं मोती सा अति उज्ज्वल तन्दुल ल्यायो नीर पखारो / अक्षयपदके हेतु भावसों श्रीजिनेश्वर ढिंग धारो पारस अक्षतं. बेला अर मचकुन्द चमेली, पारिजातके ल्यावा। चुनचुन श्री जिन अग्र चढ़ाऊ, मनवांछित फल पावो .पा.पुष्प बावर फेनी गुजा आदिक, घृत में तेल पकाई। कंचन थार मनोहर भरके, चरनन देत चढाई पारस.निवे