________________ 122 / नित्य नियम पूजा आगत नागत जिन वर्तमान सब सात शतक अरु बीस जान सवही जिनराज नमो त्रिकाल,मोहिमववारिधित ल्यो निकाल यह वचन हृदय में धारि लेव मम रक्षा करो जिनेन्द्र देव / 'रविमल' की विनती सुनो नाथ, तुमशरणलई करजोडी हाथ मनवांछित कारज करो पूर, यह अज हियेमें धरि हजूर / / पत्ता-शत सातजु बासं श्रीजगदीशं आगत नागत वर्ततु है मनवचतन पूज, सुबमन हूँजै सुरग मुक्तिपद धार त है. ॐ ह्रीं पंचमेरु सम्बन्धि दशक्षेत्रके विषै तीस चौबीसीके सात सौ बीस जिनेन्द्रेभ्यो अर्घ नि / दोहा-सम्बत् शत उन्नीस के ता उपर पुनि आठ / पीय कृष्ण तृतीया गुरु, पूरन कीनो पाठ / / अक्षर मात्राकी कसर, बुध जन शुद्ध करेहि / अल्प बुद्धि मोहि जानके, दोष नाहिं मम देहि / / पडयो नहीं व्याकरण मैं, पिङ्गल देख्यो नाहिं / जिनवाणी परसादतै उमंग भई घट मांहि / मान बढाई ना चहूँ, चहूँ धर्मको अंग / / नित प्रति पूजा कीजियो, मनमें धार उमंग / / ___ इत्याशीर्वादः / पुष्पांजलि रविव्रत पूजा यह भविजन हितकार, सु रविव्रत जिन कही। करहुँ भव्यजन लोक, मुमन दे के सही / / पूजौं पार्श्व जिनेन्द्र त्रियोग लगाय के / मिटै सकल संताप मिले निधि आयके ...