________________ 100 ] नित्य नियम पूजा बहु अगर आदि सुगंध खेऊ सुगुण पद पद्महि खरे / दुख पुजकाठ जलाय स्वामी, गुण अछय चितमें धरे ।भव." ॐ ह्रीं आचार्योपाध्यायसर्वसाधुगुरुभ्यऽष्टकर्मदहनाय धूपं निर्न भर थार पूंग बदाम बहुविधि सुगुरुक्रम आगे धरों। मंगल महाफल करो स्वामी, जोर कर विनती करों ।भव.८ ॐ ह्रीं आचार्योपाध्यायसनसाधुगुरुभ्यः मोक्षफल प्राप्तये फलं नि० जल गंध अक्षतफूल नेवज, दीप धूप फलाबली / 'द्यातन' सुगुरुपद देहु स्वामी, हमहिं तार उतावली भव.९ ह्रीं आचार्योपाध्यायसनसाधुगुरुभ्यः अनपद प्राप्तये अध्यं निक जयमाला . दोहा-कनकामिनी विषयवश, दीसै सब संसार / त्यागी वैरागी महा, साधु सुगुन भंडार // 1 // तीन घाटि नवकोड सब, बन्दी शीश नवाय / गुण तिन अट्ठाईस लौं. कहूँ आरती गाय ||2|| बेसरी छन्द एक दया पालै मनिराजा. रागदोष, द्वै हरन परं / तीनों लोक प्रकट सब देखे, चारों आराधन निकर / / पंच महाव्रत दूद्धर धारै, छहों दर्व जानें सुहितं / सातभंग वानी मन लाने, पानै आठ रिद्ध उचितं / / 3 / / नवों पदारथ विधिसौं भाखौं, बन्ध दशों चूरन करनं / ग्यारह शंका जाने माने, उत्तम बारह व्रत धरनं / / तेरह भेद काठिया चूरे, चौदह गुणथानक लखियं / महा प्रमाद पंचदश नाशे, सोल कषाय सबै नशियं // 4 //