________________ मित्य नियम पूजा ] 99 तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः / ॐ ह्रीं श्री आचार्योपाध्याय सर्गसाधु• गुरुसमूह ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् / शुचि नीर निरमल छीरदधिसम, सुगुरु चरन चढाइया / तिहूँ धार तिहूँ गदटार स्वामी, अति उछाह बढाइया / भव भोग तन वैराग धार निहार शिव तव तपत हैं। तिहूँ जगतनाथ अराध साधु सु पूज नित गुन जपत हैं। ॐ ह्रीं आचार्योपाध्यायसन्साधुगुरुभ्यः जलं निर्व० स्वाहा / करपूर चन्द सलिलसौं घसि, सुगुरु पद पूजा करौं / सब पाप ताप मिटाय स्वामी, धरम शीतल विस्तरो भव०.२ ॐ ह्रीं आचार्योपाध्यायसनसाधुगुरुभ्यः चंदनं निर्व० स्वाहा / तन्दूल कमोद सुवास उज्ज्वल, सुगुरु पद पगतर धरत हैं। गुनकार ओगुनहार स्वामी, वंदना हम करत है / भव०॥३ ॐ ह्रीं आचार्योपाध्यायसर्वसाधुगुरुभ्यः अक्षतान् निर्व० स्वाहा। शुभफुलराश प्रकाश परिमल सुगुरुपायनि परत हो। निरवार मार उपाधि स्वामी, शीलदृढ उर धरत हों भव.४ ॐ ह्रीं आचार्योपाध्यायसर्वसाधुगुरुभ्यः पुष्पं निर्व० स्वाहा / पकवान मिष्ट सलौन सुन्दर सुगुरु पांयनि प्रीतिसों। धर क्षुधारोग विनाश स्वामी, सुथिर कीजे रीतिसों ।मव.५ ॐ ह्रीं आचार्योपाध्यायसर्वसाधुगुरुभ्यः नैवेद्य निर्व• स्वाहा / दीपक उदोत सजोत जगमग सुगुरु पद पूजों सदा / जमनाश ज्ञान उजास स्वामी, मोहि मोह न हो कदा ।भव.६ ह्रीं आचार्योपाध्यायसर्वसाधुगुरुभ्यः दीपं निर्व० स्वाहा /