________________ 60 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास के समय अथवा नियमविहित भिक्षा प्राप्त न होने पर मंत्र विद्या के बल से आहार लाकर भिक्षुओं की जीविका चलाते थे।५३ आदर्श एंव अपवाद मार्ग का अवलम्बन जैन तीर्थकरों द्वारा जैनधर्मानुयायियों को अपने धर्म एंव व्रत नियमों का पालन करने के उपदेश भी दिये गये। इसी आधार पर आगम ग्रन्थों में व्रत एंव शील को खण्डित करने की अपेक्षा शुद्ध कर्म करते हुए प्राणोत्सर्ग करना अच्छा बतलाया गया है। जैन भिक्षुओं को सर्वप्रयत्नों द्वारा धर्मसंयुक्त शरीर की रक्षा करने का आदेश दिया गया है। भिक्षु, भिक्षुणियों को राजाओं, मंत्रियों एंव पुरोहितों द्वारा कष्ट दिये जाने पर शान्तिपूर्ण ढंग से उन्हें दूर करने का निर्देश दिया गया है लेकिन इसमें असफल होने पर अपवाद मार्ग का अवलम्बन लेने के लिए भिक्षुओं को आदेश प्राप्त था। क्योंकि तीर्थकरों द्वारा सत्य को ही संयम कहा गया है अपवाद मार्ग का अवलम्बन लेने पर प्रायश्चित करने का भी विधान बतलाया गया है। जैनसंघ तीर्थकर महावीर ने जैन श्रमणों के संघ को चार भागों में विभक्त किया था - श्रमण, श्रमणी, श्रावक एंव श्राविका / जैन भिक्षु अपने संघ एंव गणों का निर्माण करके, किसी आचार्य के नेतृत्व में, नियमों एंव व्रतों का पालन करते हुए रहते थे | आचार्य व्रजस्वामी के गण में 500 भिक्षुओं के एक साथ रहने के उल्लेख मिलते हैं / आगम ग्रन्थों में श्रमणों के पॉच प्रकार बतलाये गये हैं६१ - 1, णिग्गंथ (खमग), 2, सक्क (स्तपड). 3. तावस (वणवासी) गेहअ (परिव्वायअ) एंव आजीविय (पंडराभिक्सुः गोशाल के शिष्य) धार्मिक सहिष्णुता एंव समन्वयवाद आगम ग्रन्थों में प्राप्त उल्लेखों से जैन धर्म की धार्मिक सहिष्णुता एंव समन्वयात्मक प्रवृत्ति ज्ञात होती है। हिन्दू धर्म में मान्य परम्परागत देवी देवताओं इन्द्र३, स्कन्द६४, रुद६५ मुकुन्द६, शिव६७, वेश्रमण८. नाग, यक्ष, भूत. आर्या और कोट्टकिरिया आदि देवी देवताओं की पूजा के साथ ही समय समय पर एंव विशिष्ट अवसरों पर तत्सम्बन्धित उत्सव भी मनाये जाते थे। जैन ग्रन्थों में इनका उल्लेख मिलता है। त्रेष्ठ शलाका पुरुष जैनाचार्यो ने तीर्थकरों द्वारा उपदिष्ट धर्म के वर्णन के साथ ही त्रेषठशलाका