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________________ 48 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास गुजरात / जैनों के प्राप्त लेख इस समन्वयवादी एंव सार्वभौमिक रुप के प्रतीक हैं। जैन इतिहास लेखकों द्वारा इस समन्वयवादी रुप को साहित्य सृजन में भी अपनाया गया है। उन्होंने प्रचलित धार्मिक लोक मान्यताओं एंव विशिष्ट कथानकों, रुढ़ियों की उपेक्षा नहीं की है। हिन्दू धर्म के लोकप्रिय चरित्र नायकों राम एंव कृष्ण को जैन साहित्य में त्रेशठशलाका पुरुषों में सम्मान का स्थान दिया गया है। इन्हें उन्होंने अपने ढंग से वर्णन किया है। वैदिक परम्परा में जो पात्र वीभत्स एंव घृणित दृष्टि से वर्णित किये गये हैं जैन धर्म के अर्न्तगत उचित सम्मान के अधिकारी बनें हैं। इस तरह जैन साहित्यकारों द्वारा अन्य धर्मो की भावनाओं को ठेस न पहुँचाना उनकी एक अपूर्व विशेषता है। जैनेतर साहित्य का सृजन एंव उसे संरक्षण प्रदान करना जैन इतिहास लेखकों की विशेषता है। जैन इतिहास लेखकों द्वारा जैनेतर विषयों पर स्वतन्त्र ग्रन्थ निर्माण के साथ साथ उन पर विस्तृत प्रशंसात्मक टीकाएं भी लिखी गयी हैं। जैन ग्रन्थ भंडारों में कई प्राचीन महत्वपूर्ण जैनेतर ग्रन्थ भी सुरक्षित हैं। वीसलदेव रासों की लगभग समस्त प्रतियॉ जैनकवियों द्वारा लिखित उपलब्ध होती है। अमरचन्द्रसूरि ने वायडनिवासी ब्राह्मणों की प्रार्थना पर “बालभारत की तथा नयचन्द्रसूरि ने “हम्मीरमहाकाव्य की रचना की। माणिकचन्द्र ने काव्य प्रकाश पर संकेत टीका लिखी। अन्य जैनेतर ग्रन्थों में पंचतन्त्र, बेतालपंचविंगशतिका, विक्रमचरित, पंचदण्डछत्रप्रबन्ध आदि का निर्माण किया। अभिलेखों में भी चित्तोड़ के मोकन जी मन्दिर के लिए दिगम्बराचार्य रामकीर्ति से (वि०स० 1207) प्रशस्ति लिखायी। अधिकांशतः जैन अभिलेख जैनाचार्यो द्वारा लिखे गये, वे उनके धार्मिक स्थानों एंव मन्दिरों में पाये जाते हैं लेकिन दूसरे धर्म के प्रति सहिष्णु होने के कारण ये जैनेतर मन्दिरों में प्राप्त होते हैं। उन्होंने अपने धर्म के प्रति श्रद्धा से ही नहीं बल्कि इतिहास निर्माण की दृष्टि से ग्रन्थ लिखे। भगवान महावीर ने जिस समतामूलक समाज रचना की वह सर्व धर्मसमभाव, सर्वजाति समभाव एंव सर्वजीवसमभाव पर आधारित है। जैन इतिहास लेखकों ने इसमें उच्चता एंव निम्नता का आधार आचरण बताया है। पुरुष के समान स्त्री को सामाजिक अधिकार ही नहीं दिये वरन् आध्यात्मिक अधिकार भी दिये हैं। स्वयं महावीर ने दासी वन्दना से भिक्षा ग्रहण करने के साथ ही उसे दीक्षित कर छत्तीस हजार साध्वियों का नेतृत्व सोंपा। शूद्रकुलोत्पन्न हरिकेशी एंव मेतार्य को अपने भिक्षुसंध में सम्मिलित कर सामाजिक एंव आध्यात्मिक समानता को स्थापित किया है। इस तरह मानव से भी आगे बढ़कर प्राणीमात्र के लिए साधना का मार्ग प्रस्तुत करना जैनाचार्यो एंव जैन इतिहासज्ञों की विशेषता है। जैन इतिहास लेखकों ने प्रायः अपने सभी साहित्य में जैनधर्म के सिद्धान्तों का वर्णन किया है। अपरिग्रह व्रत का
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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