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________________ 44 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास "यशस्तिलक चम्पू की रचना की / इसकी कथावस्तु जैन पुराणों एंव जैन कवियों के आश्रयभूत यशोधर नृप की कथा से सम्बन्धित है। इसका वर्णन यथार्थ रुप में किया गया है। इसका उद्देश्य जनसाधारण तक नैतिक एंव धार्मिक उपदेशों को प्रचारित करना था। तत्कालीन राजतंत्र व्यवस्था का चित्रण किया गया है। जैनधर्मानुयायी व्यक्तियों के जीवन से प्रभावित होकर भी अनेक ग्रन्थों की रचना की। महासती भुवन सुन्दरी के सतीत्व से प्रभावित होकर विजयसिंह ने सं० 675 में भुवनसुन्दरी कथा की रचना की१०० | जिनेश्वरसूरि के शिष्य धनेश्वर सूरि ने मकरकेतु एंव सुरसुन्दरी के प्रेमाख्यान पर "सुरसुन्दरी चरिय"१०१ की रचना सं० 1065 में की। नाइलकुल के गुणपाल मुनि (6-10 वीं शताब्दी) ने ऋषि अवस्था में हरिषेण एंव प्रीतिमती से उत्पन्न पुत्री ऋषिदत्ता के शील से प्रभावित होकर प्राकृत भाषा में "श्रृषिदत्ता चरित* की रचना की जिसके चरित्र वर्णन को लेकर संस्कृत एंव प्राकृत में अनेक चरित्र ग्रन्थ लिखे गये हैं।०२। जैनकथाकारों ने शीलवती एंव पतिपरायण स्त्रियों के चरित्र वर्णन के लिए अनेक कथा ग्रन्थों का निरुपण किया है।०३ | जैनाचार्यो, धार्मिक नरेशों, राजकुमारों, गृहस्थों एंव धार्मिक स्त्रियों के जीवन से प्रभावित होकर इतिहास लेखकों ने ग्रन्थों में उनके क्रियाकलापों का वर्णन किया है। तत्कालीन समाज एंव संस्कृति का वर्णन छठी शताब्दी ई० के पूर्वयुगीन साहित्य के अवलोकन से ज्ञात होता है कि तत्कालीन इतिहास लेखकों का मूल उद्देश्य जैनधर्म के सिद्धान्तों का निरुपण करना था लेकिन छठी शताब्दी ई० के उत्तरयुगीन साहित्यकारों ने धर्म एंव दर्शन के सिद्धान्तों के निरुपण के साथ ही तत्कालीन समाज एंव संस्कृति के विविधक्षों का भी वर्णन किया है। वर्गव्यवस्था कर्मणा थी। स्त्रियों को पुरुषों के समान अधिकार थे। वीरचन्द्र आचार्य के शिष्य नेमिचन्द्रगणि के तरंगलोला कथा ग्रन्थ से स्त्रियों द्वारा साध्वी संध में प्रवेश मिलने एंव संध के नेतृत्व करने की जानकारी होती है 04 | पूर्व भव के पति के प्रति अगाधिप्रेम पतिव्रता की ओर संकेत करता है। गन्धर्व विवाह के पश्चात् विधिवत् विवाह करने की परम्परा समाज में गंधर्व विवाह के निम्न स्थान होने के संकेत प्राप्त होते हैं। जैन इतिहासकारों ने तत्कालीन समाज में प्रचलित वेश्यावृत्ति एंव पतिपरायणता दो विरोधी पक्षों का चित्रण करने के लिए "नर्मदासुन्दरी कथा" की रचना की। नर्मदासुन्दरी प्रतिकूल परिस्थितियों में पड़कर भी सतीत्व पर अडिग रहती है"५ / महासेन ने तत्कालीन समाज में प्रचलित स्वयंवर विवाह एंव उसमें होने वाले संघर्षो का उल्लेख जयकुमार सुलोचना कथा में किया हैं।०६ | समाज
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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