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________________ जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास तीर्थकरों, चक्रवर्तियों के उपाख्यान चरित,अर्द्धऐतिहासिक वृत्तों का संकलन करना है। वसुदेवहिन्डी में रामकथा भी प्राप्त होती है जो पउमचरिय से भिन्न है। उद्योतनसूरि ने “कुवलयमाला” नामक प्राकृत कथा श०सं० 700 में जाबालिपुर में पूर्ण की। वहाँ उस समय वत्सराज का राज्य था। इसमें संसार परिभ्रमण की कथाऐं दी गयी हैं। . आंठवी शती में त्रैलोक्य सम्बन्धी समस्त विषयों का ज्ञान कराने वाले "तिलोपण्णति ग्रन्थ की रचना प्राकृत गाथाओं में हुयी। इसकी 77 वी गाथा के अनुसार यह आठ हजार श्लोक प्रमाण हैं। ग्रन्थ नौ महाधिकारों में विभाजित है - सामान्य लोक, नरकलोक, भवनवासी लोक, मनुष्यलोक, व्यन्तरलोक, ज्योतिलोक, देवलोक एंव सिद्धलोक। मनुष्य लोकान्तर्गत वेशठशलाकापुरुषों की ऐतिहासिक राजवंशीय परम्परा महावीर निर्वाण के 1000 वर्ष पश्चात् हुए चतुर्मुख कल्कि के काल तक वर्णित है| इसी शताब्दी में श्वेताम्बर सम्प्रदाय में मुनि आचार पर हरि-भद्रसूरि ने “पचवत्युग' नामक ग्रंथ की रचना की। इसमें 1714 प्राकृत गाथाएँ हैं जिनमें मुनि दीक्षा,प्रतिनिकृत्य,गच्छाचार,अनुज्ञा एंव सल्लेखना नामक पांचवस्तु अधिकारों का वर्णन किया गया है। हरिभद्रसूरि ने वि०सं०७५७ में “समराइच्चकहा' नामक धर्मकथा लिखी। इसमें दो आत्माओं के नौ मानवभवों का विस्तृत वर्णन हैं जिसका उद्देश्य कर्मफल के सिद्धान्त का पुनर्जन्म से सम्बन्ध दिखलाना है| धूर्ताख्यान' नामक अपने कथाग्रंथ में हरिभद्रसूरि के धूर्तो के आख्यानों के माध्यम से असंभव मिथ्या एंव अमानवीय बातों का निराकरण कर सम्भव,सदाचारी एंव मानवीय आख्यामों को प्रस्तुत किया हैं। इसमें पॉच आख्यान एंव 480 गाथाएं हैं। संस्कृत भाषा की तरह तीर्थकरों की स्तुति की परम्परा का प्राचीन ग्रंथ उपसग्गहर स्तोत्र है जो भद्रबाहुकृत है इसमें पॉच गाथाओं द्वारा पार्श्वनाथ तीर्थकर की स्तुति की गयी हैं। धनपालकृत 'ऋषभ पंचाशिका' में भी 50 पद्यों द्वारा प्रथम तीर्थकर के जीवन चरित्र सम्बन्धी उल्लेख पाये जाते हैं। स्तोत्रशैली का विकास जिनसेन कृत नवीं शताब्दी में "जिनसहस्त्रनामस्तोत्र' में मिलता है। इस स्तोत्र में आदि के 34 श्लोकों में नाना विशेषणों द्वारा परमात्मा तीर्थकर को नमस्कार किया गया है। ___ शीलंकाचार्य ने ई० सन् 868 में चउपन्नमहापनिसचरिय" लिखा जिसमें 54 उत्तमपुरुषों का चरित्रचित्रण किया गया है। तीर्थकरों एंव चक्रवर्तियों का चरित्र यहाँ पूर्वोक्त नामावलियों के आधार से जैन परम्परानुसार वर्णित किया गया है। आचार्य सिद्धर्षि ने वि०सं० 662 में “उपमितिभवप्रपंचकथा' की रचना
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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