________________ 10 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास इसी शदी में महाकवि महासेन ने “प्रमुम्नवरित महाकाव्य की रचना की। कवि महासेन राजा मुंज द्वारा पूजित थे। मुंज के समय में ही (वि०सं० 1050) अमितगति ने अपना “सुभाषितरत्नसंदोह समाप्त किया। इसमें सांसारिक विषय मायाहंकार निरावरण, इन्द्रिय-निग्रहोंपदेश, स्त्रीगुण दोष विचार, देवनिरुपण आदि बत्तीस प्रकरण है। ग्रंथ के उपान्त में 217 श्लोकों में श्रावक धर्म निरुपण है। अमितगति द्वारा रचित "धर्मपरीक्षा हरिभद्रसूरि के धूर्ताख्यान' नामक प्राकृत ग्रंथ की तरह है। इसमें पौराणिक मनगढन्त कथाओं को अविश्वसनीय बतलाया गया है। इसका रचनाकाल 1070 वि०सं० है। अमितगति ने 1073 वि०सं० में मसूतिकापुर नामक स्थान में संस्कृत श्लोक बत "पंचसंग्रह" की रचना की। इसकी प्रशस्ति से अमितगति के गरु माधवसेन के समय राजा सिन्धल द्वारा राज्य करने की जानकारी होती है। अमितगति का 'उपासकाचार अमितगति "श्रावकाचार" के नाम से भी प्रसिद्ध है इस ग्रंथ के अन्त में गुरुपरम्परा दी गयी है। इस ग्रंथों के अतिरिक्त अमितगति द्वारा “सामायिक पाठ", भावनाद्वात्रिशतिका एंव योगसार प्राभृत नामक ग्रंथ भी लिखे गये। न्यायकुमुदचन्द्र एंव प्रमेयमलयार्तण्ड के कर्ता प्रभाचन्द्र धारानरेश भोजदेव द्वारा सम्मानित थे।७७ धनपाल की "तिलक-मंजरी' इसी शताब्दी की अनुपम गद्य रचना है। ये वाक्पतिराज मुंज की राजसभा के रत्न एंव “सरस्वती की उपाधि से विभूषित थे। अपने छोटे भाई शोभनमुनिकृत 'संस्कृतस्तोत्र' पर एक संस्कृत टीका लिखी। प्राकृत एंव अपभ्रंश में भी रचनाएँ प्राप्त होती हैं। ग्यारहवीं शताब्दी (वि०सं० 1162) में जयकीर्ति ने “छन्दोनुशासन' नामक रचना की। इसी शती में शान्तिसूरी एंव नेमिचन्द्र ने उत्तराध्ययन की विशाल टीकाएं लिखी। चालुक्य वंशी सिद्धराज के राजकवि प्राग्वाटवंशी श्री पाल ने सिद्धराज द्वारा निर्मित सप्रसिद्ध "सहस्त्रलिंग-सार' की प्रशस्ति लिखी है। वादिराज के समसामयिक मल्लिषेण ने ग्यारहवीं शती के अन्त एंव बारहवीं शती के प्रारम्भ में अपना महापुराण पूर्ण किया। इसमें श्रेशठशलाकापुरुषों की संक्षिप्त कथा है मल्लिषेण ने पॉच सर्गो के खण्डकाव्य 'नागकुमार काव्य एंव भैरवपदमावती-कल्प की रचना की। इस मन्त्रशास्त्र के प्रसिद्ध ग्रंथ में .- 1, मंत्रितक्षण 2, सकली करण 3. देव्यर्चन 4, द्वादशरजिकामंत्रोद्वार 5, कोधादिस्तम्भन 6, अंगनाकर्षण 7, निमित्त 8, वशीकरणयन्त्र 6, वशीकरणतन्त्र 10, गरुड़तन्त्र नाम के ये दस अधिकार है। बारहवीं शताब्दी में यशपाल कवि ने (1174-77 ई० वी०) में “मोह राज पराजय' नाटक की रचना की। “नेमिनिर्वाण नामक महाकाव्य की रचना इसी शदी में वाग्भद् द्वारा हुयी। बारहवीं शताब्दी में धनेश्वर, श्रीपाल, हेमचन्द्र, जिनचन्द्र, चन्द्रप्रभ, मुनिचन्द्र, देवचन्द्र, रामचन्द्र, गुणचन्द्र एंव विजयपाल संस्कृत के प्रसिद्ध