________________ पुस्तक परिचय "जैन सामाजिक विचारों का इतिहास" जैन वाङ्गमय पर आधारित है। जैन वाङ्गमय भारतीय वाङ्गमय का एक अभिन्न अंग हैं। जैनाचार्यों एवं साहित्यकारों ने समय, परिस्थितियों एवं सामाजिक गतिविधियों के अनुकूल संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, कन्नड़, गुजराती, मारठी एवं तमिल आदि सभी भाषाओं में धर्म एवं दर्शन से सम्बन्धित ग्रन्थों का सृजन किया। जैन दर्शन की प्रवृत्ति समन्वयवदी एवं उदारवादी होने के कारण जैन धार्मिक ग्रन्थों एवं साहित्य में तत्कालीन सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक एवं भोगोलिक इतिहास भी विविध पक्षों के साथ स्वतः प्रतिफलित हुआ है। "साहित्य" समाज का दर्पण माना गया है। जैन साहित्य के विभिन्न स्वरुप-पुराण, चरित काव्य, कथासाहित्य एवं अभिलेख भारतीय संस्कृति के विश्वकोष हैं। अतएवं भारतीय समाज एवं संस्कृति का सर्वाङ्गीण वैज्ञानिक अध्ययन करने हेतु "जैन सामाजिक विचारों के इतिहास" को अध्ययन केन्द्र (विषय) बनाया गया है। जैन सामाजिक विचारों का समाजशास्त्रीय विश्लेषण प्रस्तुत करने हेतु ऐतिहासिक एवं तुलानात्मक पद्धतियों का प्रयोग किया गया है। इससे स्पष्ट होता है कि जैन समाज उदारवादी, निवृत्तिमार्गी एवं आदर्शोन्मुखी होते हुए भी यथार्थवादी धरातल पर टिका है। यह यथार्थवादी धरातल ऐतिहासिक घटनाओं एवं सामाजिक जीवन के विविध पक्षों से निर्मित हुआ हैं। भारतीय राष्ट्र, विविध प्रकार के समाज, विभिन्न धर्म, सम्प्रदाय, वर्ग आदि के विविध कोटि के मनुष्यों के आचार, व्यवहार, सिद्धान्त, पुरूषार्थ, संस्कार, आश्रम व्यवस्था, रीतिनीति, जनजीवन पद्धति, राजतन्त्र, वाणिज्य, व्यवसाय अर्थोपार्जन एवं समाज संगठन के बहुविध वैज्ञानिक विचार भारतीय समाज के धरोहर रूप में प्राप्त होते हैं। लेखिका परिचय डॉ. उषा अग्रवाल, एम. ए. (समाजशास्त्र एवं इतिहास) विश्वविद्यालयीय योग्यता सूची में क्रमशः द्वितीय एवं तृतीय स्थान, पी.एच. डी., रीडर एवं विभागाध्यक्षा, समाजशास्त्र, कुँ. आर. सी. म. पी. जी., कालेज मैनपुरी (उ. प्र.) में सितम्बर 1982 से कार्यरत अनेकों सम्मेलनों एवं गोष्ठियों में सक्रिय भूमिका, विभिन्न शोध पत्रिकाओं में कई शोध पत्र प्रकाशित, "व्यावहारिक समाजशास्त्र" पर शीघ्र ही पुस्तक प्रकाशित होने वाली है। ISBN 81-7054-350-9 Rs. 400.00