________________ 176 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास अभिषेक, ऋषि वर्ग के आहार, तपस्वियों की सेवा, दिव्य व्रतियों, शास्त्र लिखने वालों, विद्यार्थियों एंव वाचनालय निर्माण हेतु विभिन्न राजवंशों द्वारा ग्राम एंव भूमि दान दिये जाने के उल्लेख प्राप्त होते हैं। भूमि एंव ग्राम कर मुक्त करके दान में दिये जाते थे२२६ | भूमि एंव ग्राम दान के अतिरिक्त खेत, बगीचा, दुकान, वृक्ष, तालाब, नदी, कुआ, मकान आदि स्थायी वस्तुएं भी दान में दी जाती थी२० / इसके साथ ही प्रतिमा पूजा, पुष्पों एंव दीपक जलाने हेतु तेल की चक्की, तेल, चावल के क्षेत्र, अनाज का हिस्सा, शहरों की चुंगी, गॉव के घाट की आमदनी एंव अन्यान्य स्थानीय कर, कालीमिर्च, अखरोट, पान आदि विक्री की आय, कोल्हू, खाद के गड्डे, घी, मुफ्त श्रम, भेरी शंख, चामर, नगाड़े, सुवर्ण एंव सुवर्ण के बने आभूषण, गाय, बकरी, घोड़े एंव दास दासी राजकीय एंव सामान्य व्यक्तियों द्वारा दान में दिये जाते थे२३१ | लेखों में समाज के धनिक वर्ग द्वारा वार्षिक चन्दा देने के उल्लेख प्राप्त होते हैं३२ लेखों से दान देते समय साक्षियों के उपस्थित रहने की जानकारी होती है२३३ | धर्म को राजकीय संरक्षण प्राप्त होने के परिणाम स्वरुप धार्मिक क्रिया कलापों में समग्र रुप से आचार विषयक सिद्धान्तों को क्रियान्वित किया जा रहा है या नहीं हेतु राजा द्वारा राजपडितों की नियुक्ति की जाती थी२३४ / भूमिदान प्रकरणों में युवराज से लेकर ग्राम प्रमुख तक के समस्त शासन अधिकारियों से दान प्राप्त करने वाले व्यक्ति की अधिकार रक्षा का अनुरोध किया गया है। दान के अवसर अभिलेखीय साहित्य में प्राप्त माह, पक्ष, तिथि, वार संकान्ति आदि के उल्लेखों से ज्ञात होता है कि दान देने की प्रक्रिया में उचित एंव शुभ समय का विचार आवश्यक था। विशेष दिनों, एंव नक्षत्रों में दान देने, मन्दिर निर्माण एंव जीर्णोद्धार आदि कराने का विशेष माहात्म्य होता था२३५ / सूर्य एंव चन्द्रग्रहण अथवा किसी मुख्य पर्व के अवसर पर दान देने एंव मन्दिर निर्माण कराने का विधान था७६ | ग्रहण के अतिरिक्त एकादशी, अक्षयतृतीया, संक्रान्ति, अधिक मास, उत्तरायण, पूर्णिमा आदि दान के शुभ अवसर माने जाते थे२३७ / पुत्र जन्माभिषेक, राज्याभिषेक एंव विजय के अवसरों पर राजाओं द्वारा दान देने के उल्लेख प्राप्त होते हैं२३८ | तीर्थयात्रा के समय ब्राह्मणों को दान देने एंव उनकी आजीविका के लिए सत्र खोलने की जानकारी होती है२३६ / दान की पद्धति दान के अवसर पर दान देने वाला व्यक्ति उपवास रखकर, जिन की पूजा करके संकल्प करता था। संकल्प में दानग्राही के गोत्र के साथ नाम का उच्चारण