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________________ 172 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास थे, लेखो में प्राप्त विभिन्न नाम इसके सूचक है / दण्डाधिनाथ राज्य विस्तार में सर्वाधिक सहयोगी होते थे लेखों से चालुक्य राजा विज्जल के दण्डाधिनाथ द्वारा राज्यलक्ष्मी वृद्धि करने की जानकारी होती है।६७ / राजाओं द्वारा इन्हें प्रान्तीय शासक बनाये जाने के उल्लेख प्राप्त होते हैं१६८ | युद्ध में सेनापतियों की मृत्यु हो जाने पर परिवार के लोगों को राज्य द्वारा मासिक धन देने की जानकारी होती है१६६ | सेनापतियों द्वारा दान देने एंव सन्यास धारण करने के उल्लेख प्राप्त होते हैं।७० / राजा सेनापति की प्रशंसा में लेख भी लिखवाते थे१७१। राष्ट्रीय रक्षा में दुर्ग का बहुत बड़ा स्थान था, लेखों से राजाओं द्वारा दुर्ग निर्माण कराने एंव उसकी देखरेख के लिए कोट्टपाल नामक अधिकारी की नियुक्ति कराने की जानकारी होती है। दुर्ग प्रायः सीमा के पास बनाये जाते थे।७२ / अर्थ विभाग लेखों में प्राप्त “कोषाध्यक्ष" शब्द से ज्ञात होता है कि राज्य में एक अर्थविभाग होता था जिसकी आय व्यय का लेखा कोषाध्यक्ष के पास रहता था७३ | होय्यसल लेख में खंज्जाची शब्द प्राप्त होता है | लेखों से ज्ञात होता है कि राज्य की आय के अनेक साधन थे जिनमें प्रमुख साधन भूमिकर था७५ | यह सम्भवतः उपज 1/4 या 1/6 भाग होता था जो धन तथा अन्न दोनों रुपों में लिया जाता था। भूमि कर निश्चित करने के लिए राजाओं द्वारा भूमि की नाप आदि करायी गयी। अनाज एंव अन्य उपज पर लगाये गये कर को "विशोषक कर कहा गया है१७६ | भूमि एंव ग्राम दान के लेख जिनमें दानग्राही को कर मुक्त करने का वर्णन है, भूमि कर होने का स्पष्टीकरण करते हैं१७७ | चोल लेखों से ज्ञात होता है कि यदि किसी कारण भूमि की फसल नष्ट हो जाती तो राज्य भूमिकर माफ या कम कर देता था। समय समय पर भूमि का वर्गीकरण होने एंव तदनुसार नवीन कर निर्धारण करने के उल्लेख प्राप्त होते हैं ये भूमिकर ग्राम सभाओं द्वारा एकत्रित किया जाता था, कर न देने वालों की भूमि जब्त कर ली जाती थी | __ भूमिकर के अतिरिक्त राज्य व्यवसायियों एंव शिल्पियों से भी कर लेता था। स्थल मार्गो एंव जलमार्गो पर चुंगी वसूल की जाती थी / खेतों, वनो, बागाों, खानों से भी राज्य को अत्यधिक आय होती थी। लेखों में प्राप्त उल्लेखों से आयात एंव निर्यात की गयी वस्तुओं पर कर व्यवस्था की जानकारी होती है ये कर व्यापारियों से लिये जाते थे।८१। ___ब्राह्मणों एंव मन्दिरों से लिये जाने वाले कर अत्यधिक हल्के होते थे। सामन्तों से प्राप्त कर एंव उपहारों से भी राज्य की काफी आय होती थी१८२ | लेखों में गद्याण, पण एंव काशु सिक्कों का उल्लेख प्राप्त होता है जो भेंट एंव कर रुप
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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