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________________ अभिलेख 166 शिलाहार वंश के महामण्डलेश्वर एंव सामन्त होने की जानकारी होती है।२० / चालुक्य राजा सोमेश्वर एंव होय्यसल राजवंश के लेखों से महामण्डलेश्वरों की उपाधियों के उल्लेख प्राप्त होते है / प्रायः सभी राजाओं के मांडलिक राजा होते थे।२२ / चालुक्य लेखों में मंडलेश्वर को प्रान्तीय शासक कहा गया है१२३ / प्रान्तीय शासक के लिए राजस्थानीय कुमारामात्य, उपरिक, भोगपति, भोगिक आदि शब्दों का प्रयोग पूर्वमध्यकाल में होता रहा है। भूमि कर, तथा अन्य कर राजधानी में वसूल करने के बाद शासन व्यय काटकर केन्द्रीय शासक को भेज दिया जाता था। यह मण्डल प्रशासक केन्द्रीय सरकार की सहायता से अपने अधीनस्थ पदाधिकारियों को नियुक्त करता था। पूर्वमध्यकालीन लेखों में विषयपति का नाम मिलता है - जो जिलाधीश के अनुरुप होता था। विषयपति के पास न्याय का अधिकार न था यह जिले में शान्ति तथा सुव्यवस्था बनाये रखता था यह मालगुजारी आदि करों की वसूली करता था। लेखों से “पुर' (नगर) सम्बन्धी शासन की जानकारी होती है। पर मार राजा भोज के ग्वालियर लेख से नगर के लिए पुर, स्थान तथा बोर्ड शब्दों के प्रयोग होने की जानकारी होती है।५ | यादव वंश के लेख में नगर के प्रमुख अधिकारी को "महामत्तम" कहा गया है१२६ / लेखों में नगर के राजा को पुरावधीश्वर कहे जाने एंव महाराजाधिराज की उपाधि धारण करने के उल्लेख प्राप्त होते हैं।२७ / पुर का कार्य सुचारु रुप से चलाने के लिए कार्यकारिणी समिति का गठन किया जाता था जिसके सदस्यों की कार्य अवधि एक वर्ष होती थी१२८ | ___ शासन के सुप्रबन्ध के लिए इसे भी अनेक उपविभागों में बांटा गया था जो ग्राम के नाम से प्रसिद्ध थे। राजतन्त्र के अन्तर्गत प्रजातन्त्रीय पद्धति पर शासन करने वाली यह संस्था थी। ग्रामीण शासन में ग्राम व्यवस्था क्षेत्रीय स्तर पर होने के कारण ग्राम सभा का विशेष स्थान था | ग्राम में एक ग्राम प्रमुख होता था। पल्लव लेखों में इसे ग्रामप्रमुख, चालुक्य राजा कीर्तिवर्मा द्वितीय के लेख में इसे “ग्रामाधिकारी, कल्चुरी लेख में "ग्राम महत्तराधिकारान्” एंव चन्देल राजा परमर्दि के “सेमरा ताम्रपत्र में ग्रामप्रमुख को महत्तर कहा गया है।३० / ग्राम प्रमुख प्रजातन्त्र प्रणाली पर ग्राम सभा संगठित करता ओर कई उपसमितियों द्वारा सारा प्रबन्ध करता था। पूर्व मध्यकालीन लेखों में इसे "पंचकुली" कहा गया है।३१ | ग्राम प्रमुख द्वारा वसूल किया हुआ कर राजकोष में वृद्धि करता था उसका कुछ अंश ग्राम के व्यय के लिए रखा जाता था। लेखों से ग्रामप्रमुख द्वारा जिनालय बनवाने एंव प्रबन्ध हेतु दान देने की जानकारी होती है।३२ | ग्राम सभा ग्राम की भूमि को कर मुक्त करके बेच सकती थी३३ | लेखों में प्राप्त स्थानीय अधिकारी का उल्लेख स्थानीय प्रशासन की और संकेत करता
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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