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________________ अभिलेख 167 काम में आती थी / यह भूमि नाप में अपेक्षाकृत बड़ा नाप होगा क्योंकि निवर्तन को इसका चौथाई भाग माना गया है। पल्लवादित्य वादिराजजुल कुल नामक शासक द्वारा ग्राममुख्य को 3 "पुट्टि जमीन दिये जाने के उल्लेख प्राप्त होते हैं यह भी एक भूमि माप था जो दान देने के समय काम में आता था। 'खड्डुग” भूमि माप का कोई पैमाना था जो दान में नापकर देने के काम आता था। सेठों द्वारा बसदि निर्माण हेतु पाँच खडकुंग भूमिदान में देने की जानकारी होती है। लेखों से ज्ञात होता है कि होन एंव कलम् भूमि से उत्पन्न उपज का कुछ भाग रहा होगा। कुलोतुंग चोलदेव द्वारा चन्द्रप्रभ की पूजा के लिए 420 कलम् चावल अर्पण किये जाने एंव होय्यसल वंशीय देवराज होय्यसल द्वारा 10 होन भूमिदान की जानकारी होती है / नापकर दान में दी गयी भूमि दान कर्ता द्वारा कर आदि मुक्त करके दी जाती थी। व्यापार लेखों में व्यापारिक केन्द्रो एंव व्यापारियों के नाम प्राप्त होते हैं जिन्हें विक्रमसिंह राजा द्वारा “श्रेष्ठी” की पदवी दी गयी / “सेट्ठी" एंव महाजन शब्द का प्रयोग भी व्यापारियों के लिए किया गया है। व्यापारी प्रायः धनिक होते थे। उनके द्वारा दुकान, भवन भूमि आदि मन्दिरों को दान देने के उल्लेख प्राप्त होते हैं | व्यापारियों द्वारा मन्दिर निर्माण कराने एंव रक्षा करने की जानकारी होती है। लेखों में प्राप्त विभिन्न धातुओं - सोना, चॉदी, रत्न, माणिक्य, मूंगा एंव पंचधातु आदि के उल्लेख तत्कालीन सुदृढ आर्थिक व्यवस्था की ओर संकेत करते है। सोने के आभूषण बनाये जाते थे। होय्यसल राजवंश के एक लेख से कालीमिर्च, अखरोट, चावल, सुपारी के वृक्ष तथा पान के गट्ठों पर आये धन को दान देने से इनकी उपज एंव व्यापार होने की जानकारी होती है। राष्ट्रकूट लेखों में व्यापारियो से प्राप्त करों के उल्लेखों से आयात निर्यात की गयी वस्तुओं पर कर लगाये जाने की जानकारी होती है। गांव के घाट से प्राप्त आमदनी से जलमार्ग द्वारा व्यापार होने- एंव प्रत्येक कोल्हू पर एक करधटिका तेल कर रुप में देने एंव तेल की चक्कियों के उल्लेखों से तेल के व्यवसाय की जानकारी होती है / इस तरह जैन अभिलेख गौण रुप में तत्कालीन आर्थिक स्थिति को वर्णित करते हैं। राजनीतिक गुप्तोत्तर युग में विकेन्द्रीकरण की नीति के बलवती होने के कारण
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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