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________________ कथा साहित्य 103 के सभी उच्च एंव निम्न वर्ग के स्त्री पुरुषों द्वारा निर्वाण सुख की प्राप्ति के लिए त्याग पूर्ण वैराग्यमार्ग को अपनाने की जानकारी होती है / जैन धर्म की मान्यता के अनुसार यदि समस्त भरत क्षेत्र के धान्यों को एकत्र कर उनमें एक प्रस्थ सरसों मिला दी जाये और तब एक वृद्धा के लिए उसमें से सरसों को निकालना कठिन है उसी प्रकार अनेक योनियों में भ्रमण करते हुए जीव को मनुष्य जीवन दुर्लभ है / अतएव मानव शरीर प्राप्त कर अज्ञान में धर्म को न छोड़ने का उपदेश कथाकारों द्वारा दिया गया। आवश्यक नियुक्ति में भी मनुष्य जन्म की दुर्लभता प्रतिपादित करने हेतु चोल्लक, पाशक, धान्य, द्यूत, रत्न, स्वप्न, चकचर्म, युग एंव परमाणु ये दस दृष्टान्त दिये गये हैं जैन कथाकारों ने धार्मिक कायों में बाधक कोध, मान, माया, लोभ एंव मोह को मानवी रुप प्रदान करके उनकी कथाओं द्वारा जनसाधारण को इनसे परे रहने का उपदेश दिया। जैन धर्म की मान्यता है कि औषधि, मंत्र, तन्त्र एंव योग विद्या से रोग की चिकित्सा हो सकती है लेकिन पूर्वजन्मकृत कर्मो से जीव की रक्षा नहीं की जा सकती सत्कर्मो से मनुष्य शुभ फलों को प्राप्त करता है। जैन कथाकारों ने अपनी कथाओं में व्रत एंव शील को महत्वपूर्ण स्थान दिया है। विशुद्ध कर्म करते हुए प्राणोत्सर्ग एंव धधकती अग्नि में प्रवेश करना धार्मिक दृष्टिकोण से अच्छा है लेकिन व्रत एंव शील को भंग करना अच्छा नहीं बताया गया है। संसार की सभी उत्तम वस्तुऐं - सौभाग्य, सम्पदा, विद्धता, विमलयश, वशीकरण, निरोगता एंव आध्यात्मिक वस्तुएं - स्वर्ग, मोक्ष आदि की प्राप्ति शील एंव धर्म के द्वारा ही सम्भव है। कथा साहित्य में मुनि आचार एंव श्रावक आचार को स्पष्ट करते हुए सदाचार पर बल दिया गया है। इसके लिए जैन कथाकारों ने मूरों एंव विटों की कथाओं एंव तीर्थकंरों, श्रमणों एंव अन्य शलाका पुरुषों के सदाचारमय जीवन की घटनाओं को अपना विषय बनाया है | जैन धर्म के अन्तर्गत समस्त जीवों को भव्य एंव अभव्य दो प्रकारों में विभक्त किया गया है। लेकिन कथा साहित्यकारों ने तीन मार्ग भ्रष्ट व्यापारियों की कथा द्वारा तीन प्रकार के अभव्य, कालभव्य एंव तत्क्षणभव्य जीवों का उल्लेख किया है | जैन परम्परा में यह मान्यता थी कि जनपद विहार करने से जैन साधुओं की दर्शन शुद्धि एंव महान आचार्यो की संगति से धार्मिक भावनाएं उत्पन्न होती है। ये आचार्य जयरत्नों-सम्यक् ज्ञान दर्शन चारित्र एंव सम्यकस्वरुप इन चार आराधनाओं का पालन करते थे। जैन कथाकारों ने कथाओं के माध्यम से शान्तिपूर्वक समाधि मरण करने का जनसाधारण को उपदेश दिया है। जैन लेखकों ने धर्मोपदेश के लिए उपदेश परक कथाओं के साथ ही प्रेमाख्यानों को भी अपना माध्यम बनाया है। हरिभद्रसूरि ने प्रेमाख्यानों को धर्म एंव
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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