________________ 304 ज्ञानानन्द श्रावकाचार कहीं कुंड, कहीं द्रह (सरोवर) में से निकलकर समुद्र में प्रवेश करती नदी आदि की रचना बनी है / कहीं महलों की पंक्तियां, कहीं ध्वजाओं के समूह, कहीं छोटी-छोटी ध्वजाओं के समूह का निर्माण हुआ है। पौष वदि एकम से लेकर माघ सुदी दशमी तक डेढ सौ कारीगर, रचना करने (पत्थर की कुराई करने) वाले सिलावट, चितेरे, दरजी, खराधी, खाती, सुनार आदि लगे हैं। उनकी महिमा कागज पर लिखने में नहीं आ सकती, देखने से ही जानी जा सकती है / ये रचना तो पत्थर चूने के चौसठ गज के चबूतरे पर बनी है। उसके चारों तरफ कपडे की सरायचां (कनातों) के कोट बनेंगे। चारों तरफ चार वीथिकाओं की रचना समवशरण की वीथिकाओं के सदृश्य बनेंगी / चारों ओर बडे-बडे कपडे के अथवा भोडल (अभ्रक) के काम के अथवा चित्रों के काम के दरवाजे खडे होंगे। उससे दूर चारों ओर नौबतखाना (वाद्ययंत्र बजाने का स्थान) शुरु होगा। चबूतरे के चारों ओर आसपास दौ- सौ (200) डेरे तम्बू कनात खडे होंगे / चार हजार रेजे पाध (थान) लाल छींट के रंग कर आये हैं, जो निशान, ध्वजा, चंदोवा, बिछायत आदि में लगेंगे। झालर सहित रूपा (चांदी) के दो सौ छत्र नये घडाये (बनवाये) गये हैं / पांच-सात इन्द्र बनेंगे, उनके मस्तक पर पहनाने के लिये पांच-सात मीने के काम के मुकुट बनेंगें / बीस-तीस-चालीस गड्डी कागजों को (बाग तथा पुष्प वाटिकाओं के लिये फूल पौधे बनाने के लिये) अनेक प्रकार के रंगों से रंगा गया है तथा बीस-तीस मण (लगभग सैंतीस किलोग्राम का एकमण होता है) रद्दी कागज लगे हैं, जिनसे अनेक प्रकार की रचनायें बनी हैं / पांच सौ कोडी (एक कोडी बराबर बीस नग) सोट बांस रचना में लगेंगे। ___ चौसठ गज के चबूतरे पर आगरा से आया एक ही बडा धरती से बीस गज ऊंचा शामियाना दो सौ कनातों पर आदमियों द्वारा खडा किया