________________ परिशिष्ठ -2 इन्द्रध्वज विधान-महोत्सव पत्रिका (ब्र. पण्डित रायमल्ल) आगे माह शुक्ला 10 (दशमी) संवत् 1821 (अठारह सौ इक्कीस) के वर्ष में इन्द्रध्वज पूजा की स्थापना हुई / अतः देश-देश के साधर्मी बंधुओं को बुलाने के लिये चिट्ठियां लिखीं, उनकी नकल यहां लिखते हैं / (1) दिल्ली (2) आगरा (3) भिंड (4) कोरडा जिहानाबाद (5) सिरोंज (6) बडौदा (7) इन्दौर (8) औरंगाबाद (9) उदयपुर (10) नागौर (11) बीकानेर (12) जैसलमेर (13) मुल्तान आदि पर्यन्त ऐसी चिट्ठी लिखीं, वह लिखते हैं : स्वस्ति / दिल्ली, आगरा आदि नगरों के समस्त जैन भाईयों के योग्य सवाई जयपुर से रायमल्ल का श्री शब्द वांचना (पढ़ना) यहां आनन्द वर्तता है / आपके आनन्द की वृद्धि हो / आप धर्म में बडे रुचिवान हैं / ____ आगे यहां सवाई जयपुर नगर में इन्द्रध्वज पूजा शहर के बाहर आधे कोस (लगभग डेढ किलोमीटर) दूर मोतीडूंगरी के पास करना निश्चित हुआ है / पूजा की रचना का प्रारम्भ तो पोष कृष्णा एकम से ही होने लगा है / चौसठ गज चौडा तथा इतना ही लम्बा एक चबूतरा बना है / उस पर तेरह द्वीप की रचना बनाई गयी है / उसमें यथार्थ रूप से चार सौ अठावन (458) चैत्यालय, अढाई द्वीप के पांच मेरु, नन्दीश्वर द्वीप के बावन (52) पर्वतों पर जिनमंदिर बने हैं तथा अढाई द्वीप के क्षेत्र, कुलाचल, नदी, पर्वत, वन, समुद्र आदि की रचना बनी है / कहीं कल्पवृक्षों के वन तथा उनमें कहीं चैत्यवृक्ष, कहीं सामान्य वृक्षों के वन, कहीं पुष्प वाटिका, कहीं सरोवर,