________________ दशम् अधिकार : मोक्ष सुख का वर्णन आगे मोक्ष सुख का वर्णन करते हैं / ॐ श्री सिद्धेभ्य: नमः / शिष्य श्रीगुरु के पास जाकर प्रश्न करता है - हे स्वामी! हे नाथ! हे कृपानिधि ! हे दयानिधिः हे परम उपकारी ! हे संसार सागर तारक ! भोगों से परान्मुख, आत्मिक सुख में लीन, आप मुझे सिद्ध परमेष्ठी के सुख का स्वरूप बताने की कृपा करें। वह शिष्य कैसा है ? महा भक्तिवान है तथा उसको मोक्ष लक्ष्मी की ही अभिलाषा है / वह शिष्य विशेष रूप से श्रीगुरु की तीन प्रदक्षिणा देकर दोनों हाथों को मस्तक से लगा हाथ जोडकर तथा अवसर पाकर श्रीगुरु से बार-बार दीनपने के विनय पूर्वक वचन कहता हुआ मोक्ष सुख का स्वरूप पूछता है / __तब श्रीगुरु कहते हैं - हे पुत्र ! हे भव्य ! हे आर्य ! तुमने बहुत अच्छा प्रश्न किया है, अब तुम सावधान होकर सुनो। यह जीव शुद्धोपयोग के माहात्म्य से केवलज्ञान प्राप्तकर सिद्ध क्षेत्र में जा स्थित होता है / एकएक सिद्ध की अवगाहना में अनन्तानन्त सिद्ध भगवान अलग-अलग भिन्न-भिन्न स्थित रहते हैं / कोई किसी से नहीं मिलता / सिद्ध भगवान और कैसे हैं ? उनकी आत्मा में लोकालोक के समस्त चराचर पदार्थ अपनी तीन काल सम्बन्धी सर्व द्रव्य-गुण-पर्यायों सहित एक समय में युगपत झलकते हैं / उनके आत्मिक चरण युग्लों (पुदगल शरीर अब नहीं है, केवल शुद्ध आत्मा है ) को मैं नमस्कार करता हूं। सिद्ध भगवान और कैसे हैं ? परम पवित्र हैं, परम शुद्ध हैं तथा आत्म स्वभाव में लीन हैं / परम अतीन्द्रिय, अनुपम, बाधा रहित, निराकुल, सरस रस का निरन्तर पान करते हैं / उस रसपान में कोई अन्तर (बाधा) नहीं पडती है / सिद्ध भगवान और कैसे हैं ? असंख्यात प्रदेशी