________________ स्वर्ग का वर्णन 221 मानों पाप के भय से छिपकर रहने के लिये अंधकार की जननी ही है / इत्यादि नाना प्रकार के रत्नों को लिये स्वर्ग की भूमि देवों के मनों को प्रमुदित करती हैं / सर्वत्र पन्ने जैसी है, अमृत से मीठी, रेशम सी कोमल, चन्दन सी सुगंधित, सावन भादवे की हरियाली सदश्य पृथ्वी शोभती है. जो सदा एक जैसी रहती है। ___ स्थान-स्थान पर ज्योतिष देवों के विमानों के सदृश्य उज्जवल आनन्द भवन, शिलायें, पर्वतों के समूह बने हुये हैं जिनमें देव रहते हैं / कहीं स्वर्ण-रूपा के पर्वत शोभित हैं, कहीं वैडूर्यमणि, पुखराज, लहसनिया तथा मोतियों के समूह अनाज के ढेरों के समान पडे हैं / कहीं आनन्द मंडप है, कहीं क्रीडा मंडप है, कहीं चर्चा मंडप है, कहीं केलि करने के निवास हैं। कहीं ध्यान धरने के स्थान हैं तो कहीं चित्राबेल है और कहीं कामधेनु है, कहीं रस-कूपिका के कुंड भरे हैं। कहीं अमृत के कुंड भरे हैं, कहीं नव निधियां पडी हैं, कहीं हीरों के ढेर पडे हैं तो कहीं माणिक्य के समूह पडे हैं। कहीं पन्ने की ढेरियां हैं तो कहीं नीलमणि आदि मणियों के ढेर पडे हैं / इत्यादि अनेक-अनेक प्रकार के रत्नों से तथा सुगन्ध एवं अनेक वाद्य यंत्रों की राग से विमान व्याप्त हो रहे हैं / इत्यादि सुख सामग्री स्वर्गों में पाई जाती है / स्वर्ग लोक के सुखों का वर्णन करने में गणधर भी समर्थ नहीं हैं, केवलज्ञान गम्य है / ऐसे में ये जीव धर्म के प्रभाव से सागरों पर्यन्त सुख पाते हैं। ___ अत: हे भाई! तू निरन्तर धर्म का ही सेवन कर, धर्म के बिना ऐसे भोग कभी नहीं मिल सकते हैं। अपने हित के वांछक पुरुषों को धर्म (व्यवहार धर्म) परम्परा से मोक्ष का कारण है / ऐसे सुखों को भी आयुबल पूर्ण होने पर छोडकर देव वहां से भी च्युत हो जाता है / आयु पूर्ण होने में छह मास बाकी रह जाने पर यह देव अपने मरण को जान जाता है / वहां माला अथवा मुकट अथवा शरीर की कांति की ज्योति के मंद पड़ने से देव अपने