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________________ 211 स्वर्ग का वर्णन नष्ट हो जाती हैं, जैसे अग्नि के निमित्त से दूध उछलकर बर्तन के बाहर निकलता है तथा जल के निमित्त से बर्तन में ही निमग्न हो जाता है, उसीप्रकार प्रतिमाजी की शान्त मुद्रा देखकर नियम से परिणाम निर्विकार शान्त रूप होते हैं, यही परम लाभ जानना चाहिये। __ ऐसा ही निमित्त-नैमितिक संबंध लिये वस्तु का स्वभाव स्वयमेव बना है, जिसका निवारण करने में कोई समर्थ नहीं है / अन्य भी उदाहरण कहते हैं - जैसे वही जल की बूंद गर्म तवे पर पडने से नाश को प्राप्त होती है। सर्प के मुख में पड़ने से विष हो जाती है, कमल के पत्र पर पड़ने से मोती सदृश्य शोभित होती है। सीप में पड़ने पर मोती हो जाती है तथा अमृत के कुंड में पड़ने पर अमृतमय हो जाती है। इत्यादि अनेक प्रकार जल की बूंद परिणमित होती है, उसकी अद्भुत विचित्रता केवली भगवान ही जानते हैं, देश मात्र (अल्प मात्रा में) सम्यग्दृष्टि पुरुष भी जानते हैं / यहां कोई प्रश्न करे - प्रतिमाजी तो जड है, अचेतन है, स्वर्ग मोक्ष कैसे देगी ? ___ उनको कहते हैं - हे भाई ! प्रत्यक्ष ही संसार में अचेतन पदार्थ फल देते देखे जाते है। चिन्तामणी, कल्पवृक्ष, पारस, कामधेनु, चित्राबेल, नव निधियां आदि अनेक वस्तुयें फल देती दिखाई देती हैं / भोजन से क्षुधा मिटती है, जल पीने से प्यास मिटती है, अनेक औषधियों के निमित्त से अनेक जाति के रोग उपशांत होते हैं, सर्प अथवा अन्य विष से प्राणान्त होता है / सच्ची स्त्री के शरीर के स्पर्श मात्र से पाप लगता है, उसीप्रकार प्रतिमाजी के दर्शन करने से मोह कर्म गलता है। वही वीतराग भाव का होना है, उसी का नाम धर्म है / अतः प्रतिमाजी का दर्शन स्वर्ग-मोक्ष का कारण है / प्रतिमाजी के दर्शन से अनन्त जीव तिरे हैं तथा आगे भी तिरेंगे। प्रतिमाजी की पूजा-स्तुति करना है वह तीर्थंकर देव के गुणों की अनुमोदना है तथा जो पुरुष गुणों की अनुमोदना करते हैं उन पुरुषों को उसी सदृश्य गुण प्रकट होते हैं एवं अवगुणी पुरुषों की अनुमोदना करने पर
SR No.032848
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaimalla Bramhachari
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2010
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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