________________ विभिन्न दोषों का स्वरूप 99 तो उसे लेकर शरीर के विशेष मैले किसी पुराने वस्त्र में रख देना चाहिये, धरती पर डालना नहीं चाहिये। वे जूं आदि कपडे में बहुत दिनों तक मरती नहीं है, आयु पूर्ण होने पर ही मरती हैं तथा उस वस्त्र को ऐसे स्थान पर धोना चाहिये जहां का पानी नदी के किनारे पर ही सूख जावे अथवा ऐसे प्रासुक स्थान पर डालिये कि जल वहां का वहीं सूख जावे अथवा भूमि में सूख जावे / यदि कदाचित वह पानी नदी में वापस जाता है तो वस्त्र अनछने पानी से ही धोया कहा जावेगा / विवेक पूर्वक छने पानी से ही वस्त्र धोना उचित है / बेचने के लिये किसी प्रकार वस्त्र को धोना उचित नहीं है। वस्त्र रंगाने के दोष आगे वस्त्र रंगाने के दोष कहते हैं / नीलगर अथवा छींपा अथवा रंगरेज आदि दो चार अथवा पांच सात दिन पर्यन्त रंग के पानी का भण्डार रखते हैं तथा उसमें कपडों को डुबो कर रगड-रगड कर रंगा जाता है। फिर नदी आदि में ले जाकर धोते हैं, पुन: रंगते हैं, पुन: धोते हैं / इस ही भांति पांच सात बार धोना रंगना किया जाता है / इसप्रकार धोने से रंग का पानी जहां तक नदी आदि में फैलता है वहां तक के जीव बारम्बार मारे जाते हैं / अतः इसप्रकार वस्त्र रंगवाने में महापाप जानकर सतपुरुष को वस्त्र रंगवाने का त्याग करना योग्य है। सेतखाने (मल त्यागने का स्थान) के दोष आगे सेतखाने के पाप बताते हैं / एक बार मध्यान्ह के समय खुला जंगल में निहार (मल का त्याग) करते हैं, तो तत्काल असंख्यात सम्मूर्छन मनुष्य तथा सूक्ष्म अवगाहना के धारी असंख्यात त्रस जीव उत्पन्न हो जाते हैं / दो चार पहर बाद वे दिखाई देने लगते हैं / जितना वह मल होता है उतने ही लट आदि के समूह रूप त्रस राशि उत्पन्न होते आंखों से देखे जाते हैं।