________________ 98 ज्ञानानन्द श्रावकाचार वस्त्र धुलाने के दोष आगे कपडे धुलाने रंगाने के दोष कहते हैं / प्रथम तो उन कपडों में मैल के निमित्त से लीख, जूं आदि त्रस जीव उत्पन्न होते हैं, वे जीव (उन वस्त्रों को) भट्टी में अथवा क्षार के पानी में डालने पर नाश को प्राप्त होते हैं तथा उन वस्त्रों को नदी आदि के किनारे शिला पर पछाड-पछाड कर धोया जाता है / पछाडते समय उस पर पानी डाले जाने से मेंडक, मछली जैसे अगणित छोटे-बडे जीव कपडे की तह (लपेट) में आ जाते हैं जो कपडे के साथ शिला पर पछाडे जाते हैं / पछाडे जाने के कारण वे जीव खंड-खंड हो जाते हैं तथा वह क्षार का पानी नदी आदि में बहुत दूर तक फैलता है, बहती नदी में तो बहुत दूर तक बहता चला जाता है / जिससे जहां तक तेज क्षार का रस पहुंचता है वहां तक के सर्व जीव मृत्यु को प्राप्त होते हैं / कपडे को साबुन से नदी में धोया जाने पर उसी प्रकार साबुन का अंश पहुंचता है वहां तक नदी का पानी प्रासुक हो जाता (उस पानी के सर्व जीव मृत्यु को प्राप्त हो जाते ) है, जैसे एक पानी के मटके में चुटकी भर लोंग अथवा डोडा अथवा इलायची आदि डालने से वह प्रासुक हो जाता है। ___ कुछ बडे पापी सैंकडों हजारों कपडे के थान बहुत अल्प लोभ के लालच में धुलवाकर बेचते हैं, उनके पाप का क्या कहना ? अत: धर्मात्मा पुरुष धोबी से कपडे धुलवाने का त्याग करें / इसका अगणित पाप है / कदाचित पहनने के कपडे धोये बिना काम न चले तो गाढे छनने से नदी आदि का पानी किसी बर्तन में छानकर जिवाणी पहुंचाने के बाद नदी अथवा कुये को देखकर एवं कपडे के जूं आदि शोध कर धोना चाहिये। ___ भावार्थ :- मैले कपडे को शरीर से उतारने के बाद दस-पन्द्रह दिन रखा रखना चाहिये। उसके बाद भी कोई चूं, लीख उसमें रह गयी हो (सकती है) उसे नेत्रों से शोधना तथा कोई (जूं, लीख आदि) नजर आ