________________ 90] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान =============== === विजय पूर्व दिश सार, प्राच्य नाम वक्षार है। श्री जिनभवन निहार, अर्घ जजों कर भावसों॥२५॥ ॐ ह्रीं विजय मेरुके पूरव विदेह सम्बन्धी प्राच्य नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥६॥ अर्घ॥ गिर वैश्रवण सुजान, पूरव विजय सु जानिये। अर्घ जजों धर ध्यान, जिनमंदिरमें जायकै // 26 // ॐ ह्रीं विजय मेरुके पूरव विदेह सम्बन्धी वैश्रवण नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥७॥ अर्घ // विजय सु पूरव द्वार, गिर अंजन वक्षार है। वसु विध अर्घ उतार, जिनमंदिर पूजों सदा // 27 // ॐ ह्रीं विजय मेरुके पूरव विदेह सम्बन्धी अंजनगिर नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥८॥ अर्धं // अथ जयमाला-दोहा विजयमेरु पूरव दिशा, गिर वक्षार विशाल। * तिनपर जिनमंदिर बने, तिनकी सु जयमाल // 28 // पद्धडी वर दीप धातुकी खंड मान, ताकि पूरव गिर विजय जान। सिंह गिरकी पूरवदिश पवित्र, षोड़श विदेह सोहैं विचित्र॥ तहां तीर्थंकर राजैं सदीव, जिनके पद परसैं भविक जीव। तहां जिनवरदोय बिराजमान,स्वयंजाति स्वयंप्रभुगुणनिधान॥ तिनको सुरनर खग सीस नाय,बहु पाठ पढ़ें जिनगुण सुगाय। जै मुनिगण तिनका धरै ध्यान निजरूप निहारै हरष छान॥ जै जिनवाणी ध्वन रही छाय, श्रीगणधरअर्थकरेंअर्थबनाय। भवि जीव सुनैं आनंद होय, निज२ भाषा समझै सुलोय॥