________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [79 अथ धातुकी द्वीपमध्ये विजय मेरुके चारों विदिशा मध्ये चार गजदन्त पर सिद्धकूट चार जिनमंदिर पूजा नं. 13 अथ स्थापना-मद अवलिप्तकपोल छन्द विजयमेरुकी चारों विदिशा, तिनमें हैं गजदंत सु चार। तिनपर सिद्धकूट जिनमंदिर, ताको वर्णन अगम अपार॥ तिनको सुरपति खय मिल पूजत, हमें शक्त नाहीं सो जान। यातें आह्वानन विध करकै, अपने घर पूजत जिन थान॥ ___ॐ ह्रीं विजय मेरुके चारों विदिशा मध्ये चार गजदंत पर सिद्धकूट जिन मंदिरेभ्यो अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननं। अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट सन्निधिकरणम्। स्थापनम्। अथाष्टकं-सुन्दरी छन्द जल सु उज्वल प्राशुक लाइये,जिन सु पूज परम पद पाइये। गिर विजय गजदंत सुचार जू, जजो जिनमंदिर उरधार जू॥ ___ॐ ह्रीं विजयमेरुके अग्निदिश सौमनस // 1 // नैऋत्यदिश विद्युतप्रभ // 2 // वायव्यदिश मालवान // 3 // ईशानदिश गंधमादन नाम गजदंत पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥४॥ जलं॥ परम पावन चंदन गारये, जिन सु पूजत दाह निवारये। गिर विजय.॥३॥ ॐ ह्री.॥ चंदनं॥ सरस अक्षत उज्वल धोयके,जिन सु पूजत निर्मल होयकै। गिर विजय.॥४॥ ॐ ह्री.॥ अक्षतं॥ फूल सुरतरुके सु मंगाइये, जिन सु पूजत काम नशाइये। गिर विजय. // 5 // ॐ ह्री.॥ पुष्पं //